SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ ] प्राचीन जैन स्मारक। मालूम हुआ कि दक्षिणमें सन् ९७३के पहले १९ राजा हो चुके थे । आठवीं शताब्दीके मध्यमें १६वें राजा दन्तीदुर्गाने चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा द्वि०को परास्त किया। उसको हटाकर उसके चाचा कृष्ण प्रथमने राज्य किया जिसके राज्यमें एलोराका कैलाश मंदिर बनाया गया था। कृष्णके पीछे तीसरा राजा गोविन्दराज तृ० हुआ । इसने लाड़ देश ( मध्य और दक्षिण गुजरात ) को जीता और अपने भाईको सुपुर्द कर दिया । मालवा भी उसे दिया और आप पल्लव और कांची राज्यको जीतने गया। गोविन्दराजके पीछे . अयोश्चर्प प्रथमने मान्यखेड़ (जि० हैदरावाद) में ६२ वर्ष राज्य किया । यह दिगंबर जैनधर्मका अनुयायी था He patronised Digalpber sect of Jaios and was follower of that creed. सन् ९७३में ध्रुवराष्ट्र कन्नौजमें आया। वहां गाहड़वाल या गहरवार नामका नया वंश स्थापित किया । इस वंशके सात राजा हुए-(१) यशोविग्रह, (२) :महीचंद्र, (३) चंद्रदेव, (४) मदनपाल, (५) गोविन्दचंद्र, (६) विजयचंद्र, (७) जयचंद्र (पृथ्वीराजके समयमें)। ___ जोधपुरके महाजन-नौ सैकड़ा महाजन हैं जिनमें पांचमें चार भाग जैनी हैं। महाजनोंमें ओसवाल, पोरवाल, अग्रवाल, सरावगी (अर्थात् खंडेलवाल) तथा महेश्वरी हैं। उनमें सबसे अधिक ओसवाल हैं जिनकी संख्या १०७९२६ है इनमें ९८ सैकड़ा जैनी हैं। __ ओसवाल जैन- ये ओसवाल लोग भिन्न २ जातिके राजपूतोंकी संतान हैं जो दूसरी शताब्दीमें जैन धर्मी हुए थे । उनका नाम ओसवाल इसलिये प्रसिद्ध है कि वे ओसा या ओसरांज नग
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy