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________________ राजपूताना। [१४१ लेखि | यह प्रशस्ति मनोहर काव्योंमें है नकल छपने योग्य है। इसका भाव यह है कि राजा मौकल सुपुत्र कुम्भकरणके राज्यमें गुणराज सेठ थे उनके बड़ोंमें धनपाल सेठ थे जिन्होंने आशापल्ली में मंदिर बनवाया था। गुणराजने सं० १४५७में संघ सहित यात्रा गिरनार व सेजयकी की व १४६८में दुर्भिक्ष पड़ा था तब खूब दान किया । १४७०में सोपारक तीर्थकी यात्रा की। इसके ५ पुत्र थे उनमें तीसरा निलय था । इसको राजा मोकल बहुत मानता था । इसने इस चित्रकूट दुर्गपर जिन मंदिर बनवानेका प्रवन्ध किया। तब वहां चंद्रगुच्छीय देवेन्द्रसरिके शिप्य सोमप्रभसूरि उनके सोमतिलक उनके देवसुन्दर गुरु उनके सोमसुंदर गुरु थे उनसे उपदेश पाकर गुणराजने मंदिर राजा मोकलकी आज्ञासे बनवाया । गुणराज केशवंश तिलक था। सोमसुंदरके शिप्य चारित्ररत्नगणिने इस प्रशस्तिको १४९५ संवतमें रचा। प्रतिमा स्थापनका श्लोक है "तत्र श्री जिनशासनोन्नतिकररेत्युदभुतैरुत्सर्वनद्यां श्रीवरसोमसुंदरगुरु प्रष्टैःप्रतिष्ठापितां । वर्षे श्रीगुणराजसाधुतनयाः पंचाष्ठरत्नप्रभो न्यास्यं तत्प्रतिमामिमामनुपमा श्रीवर्द्धमानप्रभोः ॥१०॥ (१) नगरी-चित्तौड़से उत्तर करीव ७ मील वेराच नदीके दक्षिण तटपर । यहां वेदलाके रविका राज्य है, वहुत ही पुरानी जगह है। यह किसी समयमें बहुत प्रसिद्ध नगर था-प्राचीन नाम माध्यमिक है। यहां सन् ई०से पहलेके सिक्के व खंडित लेख मिले हैं। कुछ लेख विकटोरिया हॉल लाइब्रेरी उदयपुरमें हैं। यहां दो बौद्ध स्तूप हैं व एक पत्थरकी बौहोंकी इमारत है जिसको हाथीका पारा कहते हैं।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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