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________________ १४४ ] प्राचीन जैन स्मारक। शताब्दीमें गुजरातसे लाई गई थी। भील लोग इसको कालाजी कहते हैं ( Indian Intiquary Vol. I ) यह मूर्ति खास दिगम्बरी है। आसपास और वेदियोंमें भी चारों ओर दि० जैन मुर्तियें हैं। जीर्णोद्धारके लेखोंमें भी दि. महाजनोंका वर्णन है। । (१०) उदयपुर शहर-यहां कुल १५९७६ की वस्तीमें ४५२० जनी हैं। (११) नागदा-यहांसे उत्तर १४ मील एकलिंगजीके पास एक जैन मंदिर है जिसको अदभुतजीका मंदिर कहते हैं। यह इसलिये प्रसिद्ध है कि यहां सबसे बड़ी श्री शांतिनाथजीकी मूर्ति ६|| फुटसे ४ फुट है। सं० १४९४ है। इस नामका प्राचीन नाम नागहरिद है। (H. Cousin A. S. of Western India 1905 ) में है कि इस शांतिनाथकी मूर्तिको राजा कुम्भकरणके राज्यमें सारंग महाजनने प्रतिठा कराई थी। भीतके सहारे भृमिपर तीन बड़ी मूर्तियां श्री कुंथनाथ, अभिनन्दननाथ व अन्य १ है। इस मंदिरके पास दूसरा मंदिर श्री पार्श्वनाथ भगवानका है इसमें मूल मंदिर, गर्भमंडप, सभामंडम, फिर दूसरा बड़ा मंडप, सीढ़ियां व चौथा मंडप है। मंडपके पाप्त कई छोटी मंदिरकी गुमटियां हैं जिनमें जो दाहनी तरफ हैं, उनको राणा मोकलके राज्यमें सं० १४८६में एक पोड़वाड़ महाननने बनवाया था। इस पार्श्वनाथ मंदिरके उत्तरमें दूसरा एक प्राचीन ध्वंश मंदिर राजा कुमारपालके समयका है। एक लिंगकी पहाड़ीके नीचे एक मंदिर जनियोंका पद्मावतीके नामसे है, भीतर तीन छोटे मंदिर हैं, दाहनी तरफ
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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