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प्राचीन जैन स्मारक ।
स्मारक है । इसके नीचे एक तरफ जैन मंदिर है, द्वार व आलोंपर पद्मासन मूर्तियें हैं ।
इस प्रसिद्ध कीर्तिस्तम्भमें Imperial Gasetteer of India. ( Rajputana ) 1908 में तो यह लिखा है कि इसको एक बघेरवाल महाजन जीजाने बनवाया जब कि Archeological survey of India 1905-6 पृष्ठ ४९ में चित्रकूट दुर्ग महावीरप्रसाद प्रशस्तिके आधारसे यह लिखा है कि राजा कुमारपालने इस कीर्तिस्तंभको बनवाया । दोनों में कौनसी बात ठीक है इसकी खोज लगानी चाहिये । परंतु A. P. RK. of W. India 1906 में इस जैन कीर्तिस्तंभ सम्बन्धी पांच पाषाणोंके लेखका भाव दिया है नं० २२०५ से २३०९ तकके कि इनमें जैन सिद्धांतों की प्रशंसा है व एक प्रगटपने कहता है, कि इस स्तम्भको घेरवाल जातिके किसी जीजा या जीजकने वनवाया । हमारी रायमें यह बात ठीक मालूम होती है।
ऊपरके कथनानुसार श्री महावीर स्वामीके मंदिर पर लिखी हुई प्रशस्तिकी नकल संस्कृतमें पूना भंडारकर ओरियन्टल इंस्टिट्यूटमें देखनेको मिली नं ० ११३२ । १८९१-९९ है | इसमें १०२ श्लोक हैं । मंगलाचरण हैजिनवदनसरोजे या विलासं विशुद्ध, इयनयमयपक्षाराजहंसीव धत्ते । कुमतसुमतनीरक्षीरयोर्दू व्यक्तिकर्त्री, जनयतु जनतानां भारतीं भारती सा ॥ १ ॥ अंतमें है “ इति श्री चित्रकूटदुर्गमहाबीरप्रासाद प्रशस्तिः चचारुचक्रचूड़ामणि महोपाध्याय श्री चारित्ररत्नगणिभिर्विरचिताः । संवत १५०८ प्रजापति संवत्सरे देवगिरौ महाराजधान्यां इदं प्रशस्ति