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________________ १३८ ] प्राचीन जैन स्मारक । सात लाइन की मूर्तियें क्रमसे २४ - २४-२१-१८-१२-१२-१२: हैं। ऊपर दो शिखर हैं । १॥ वालिस्त ऊपर शिखरकी ऊपरी - भागके नीचे आठ बैठे आसन मूर्तियें हैं, ये सब मूर्तियें दि० जैन हैं । हमने इस चित्तौड़गढ़ की यात्रा ता० २९ अप्रैल १९२३ को डाकटर पदमसिंह जैनीके साथ की थी उससे जो विशेष हाल विदित हुआ वह इस प्रकार है ऊपर जाकर सिंगारचवरीके वहां व आसपास जो जैन मंदिर हैं उनका हाल यह है :- १ जैन मंदिर जो पहले ही दिखता है इसके द्वारपर बीचमें पुद्मासन पार्श्वनाथजीकी मूर्ति है व यक्षादि हैं, भीतर वेदी में प्रतिमा नहीं है- शिखर पाषाणका बहुत सुन्दर : है । इस मंदिर के स्तम्भमें यह लेख है - " सं० १९०५ वर्षे राणा श्री लाषा पुत्र राणा श्री मोकल नंदण राणा श्री कुंभकर्णकोष व्यापारिणा साहकोला पुत्ररत्न भंडारी श्री वेलाकेन भार्या वील्हण - देवि जयमान भार्या रातनादे पुत्र भं० मूंधण्ड भं० धनराज भं० कुरपालादि पुत्रयुतेन श्री अष्टापदाह श्री श्री श्री शांतिनायक मूलनायक प्रासादकारितं श्री जिनसागर सूरि प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे... रं राजंतु श्री जिनराजसुरि श्री जिनवर्द्धनसूरि श्री जिनचंद्रसूरि श्री जिनसागरसूरि पट्टांभोजाकनंदात् श्री जिनसुंदरसूरि प्रसा-दतः शुभं भवतु । उदयशील गणिनं नमीति । यह लेख श्वेताम्बरी है । इसके थोड़ा पीछे जाकर एक जैन मंदिर है जो पुराना है व पड़ा है तथा दिगम्बरी मालूम होता है। भीतर वेदीके कमरे के द्वारपर पद्मासन मूर्ति पार्श्वनाथ व यक्षादि, भीतर प्रतिमा नहीं । शिषर बहुत सुन्दर है । इसकी फेरीमें पीछे तीन मूर्ति पद्मासन प्राति :
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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