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राजपूताना।
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सं० १४९६में संकलन किया व जिसकी नकल वि० सं० १९०८ में की गई। यह प्रशस्ति कहती है कि यह कीर्तिस्तम्भ मूलमें सन् ११०० के अनुमान रचा गया था, किन्तु राणा कुंभके समयमें सन् १४५०के अनुमान इसका जीर्णोद्धार हुआ। इस लेखमें किसी शिलालेखकी नकल है जो श्री महावीरस्वामीनीके जैन मंदिरमें • मौजूद था तथा कीर्तिस्तम्भ उसके सामने खड़ा था। यह लेख कहता है कि इस मंदिरको उकेशा जातिके तेजाके पुत्र चाचाने वनवाया था। यह लेख यह भी कहता है कि गणराज साधुके पुत्रोंने इस मंदिरका जीर्णोद्धार किया और नवीन प्रतिमाएं स्थापित की। इस कामको उनके पिताने वि०सं० १४८५ (सन् १४२८)में मोकलनी राणाकी आज्ञासे शुरु किया था। यह लेख यह भी कहता है कि धर्मात्मा कुमारपालने यह ऊंची इमारत कीर्तिस्तम्भ नामकी वनवाई । मंदिरकी दक्षिण ओर यह कैलाशकी शोभाको छिपाता है। . . स० नोट-जो मूर्तियां इस कीर्तिस्तम्भपर बनी हैं वे सव दि. जैन हैं । यदि कुमारपालने बनाया हो तो यह मानना पड़ेगा कि कुमारपाल या तो दिगम्बर जैन होगा या दि० जैन धर्मका प्रेमी होगा।
पृष्ट ४४ में १७ नं.के चित्र में इस स्तम्भका फोटो है। यह फोटो २ वालिस्तका है । नीचेसे आधबालिस्त जाकर खड़े आसन दि० जैन मूर्ति है दोनों तरफ दो इन्द्र हैं । इसके ऊपर ३ वैठे आसन, मूर्ति हैं। उसके ऊपर एक मंदिरके मध्यमें तीन खडे आसन जैन मूर्तियें उनके ऊपर और वगलमें ७ लाइन पद्मासन मूर्तियोंकी हैं वे