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________________ राजपूताना। [१२६ कुछ पीढ़ी पीछे कनकसेनसे काठियावाड़में वल्लभीका राज्य स्थापित किया गया । वर्वर आक्रमणकारोंके सामने वल्लभीके राजाओंका पतन हुआ उनका मुखिया शिलादित्य मारा गया। उसकी गर्भवती रानीसे उत्पन्न गुहादिसने ईडर और मेवाड़में राज्य किया। इससे गोहलट वंश उत्पन्न हुआ । गुहादित्यके पीछे छठा राजा महेन्द्र द्वि० था जिसका नाम वापा प्रसिद्ध था। इसकी राज्यधानी उदयपुरके उत्तर नागदापर थी । इस बापाने चित्तौड़पर चढ़ाई की जहां मोरी जातिके मानसिंह तव राज्य कर रहे थे । बापाने इसको हटा दिया और वहां सन् ७३४ में अपना राज्य स्थापित किया तथा रावलकी उपाधि धारण की। इनका समाचार १४वीं शताब्दीके प्रारम्भ तक विदित नहीं हुआ । इस १४वीं शताब्दीके प्रारम्भमें रतनसिंह प्रथम महाराणा था तब बादशाह अलाउद्दीनने सन् १३०३में चढ़ाई की । रतनसिंह युद्ध में मारा गया और चित्तौड़का किला ले लिया गया। पीछे राणा हमीरसिंहने चित्तौड़को फिर हस्तगत किया । यह सन् १३६४ में मरा । राणा लक्षसिंह या लाखा (१३८२-९७) के समयमें जावरमें चांदीकी खानें मिलीं। पीछे प्रसिद्ध राणा कुंभ (१४३१६८) हुआ जिसने गुजरातके मुहम्मद खिलजी कुतुबुद्दीनको हरा दिया और चित्तौड़में अपनी विजयकी स्मृतिमें जयस्तम्भ स्थापित किया। इसने बहुतसे किले बनवाए जिनमें मुख्य कुंभलगढ है। राणा रायमलने १४७३ से १५०८ तक राज्य किया फिर राना संग्रामसिंह या राना सांगा हुए । इनके समयमें मेवाड़ बहुत ऐश्वर्ट युक्त था। राणा सांगाने बावर वादशाहसे सन् १९२७में
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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