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________________ १३२] प्राचीन जैन सारक। गया। ध्वंश स्थानोंको धूलकोट कहते हैं । यहां १०वीं शताब्दीके 'वार लेख तथा सिक्के मिले हैं। कुछ पुराने जैन मंदिर अभी भी मिलते हैं। पुराने हिन्दू मंदिरोंके अवशेष भी मिलते हैं जिनमें वढ़िया खुदाई है। ( Sce 1. Todd antiquities to Rajputana Vol. II 1832. Fergusson architecture 1848). (२) विजोलिया-यह बूंदीके कोनेपर है। उदयपुर शहरसे ११२ मील उत्तर पूर्व है व कोटासें पश्चिम ३२ मील है। इसका प्राचीन नाम विन्ध्यावली है। यहां श्री पार्श्वनाथ भगवानके पांच जैन मंदिर हैं, एक मध्यमें व चार चार तरफ हैं । १२ वीं शताब्दीके एक महलके अवशेष हैं। १२ वीं शताब्दीके दो पाषाण लेख भी हैं। एकमें अनमेरके चौहानोंकी वंशावली चाहूमानसे सोमेश्वर तक दी है। श्री पार्श्वनाथ मंदिरके सरोवरके उत्तरओर भीतके पास महुवा वृक्षके नीचे पाषाण पर यह लेख है। इसमें यह लेख है कि पृथ्वीराजके पिता सोमेश्वरदेवने एक ग्राम खेना भेट किया । लेख लिखाया महाजनने संवत १२२६ या सन् ११६९में ( 1. A. S. Sengul Vol. LV P. 1 P. 40 ). तथा दूसरेमें एक जैन काव्य है जिसका नाम उन्नतशिपरपुराण, है, यह अभी प्रगट नहीं है। (Tod. Raj. Vol, I] Cunningham A. S. of N. India Vol. यहां जो जैन मंदिर हैं उनको अजमेरके चौहान राजा सामेश्वरके समयमें सन् १९७० में एक महाजन लोलाने बनवाए थे । इनमेंसे एकके भीतर एक छोटा मंदिर और है। पापाणलेखका सन् भी ११७० है। VI P. 234-52).
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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