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________________ १२८ ] प्राचीन जैन स्मारक। - चन्द्रावतीमें हैं खुदे हुए मंदिर उदयपुरमें वरोली पर व नागदा-पर क्रमसे नौमी और ग्याहरवीं शताब्दीके हैं तथा चितौड़में एक जकस्तम्भ १५ वीं शताब्दीका है। जैनियोंकी संख्या-सन् १९०१ में २॥ कौसदी भी अर्थात कुल जनी ३४२५९६ थे जिनमें ३२ सेकड़ा दिगम्बरी, ४६ मैकड़ा श्वेताम्बरी मूर्तिपूजक तथा शेष स्थानकवासी थे। [१] उदयपुरराज्य (उदयपुर रोजडेन्सी) उदयपुर रेजिडमी या मेवाड़में ४ राज्य हैं। उदयपुर, वांसवाडा, डूंगरपुर और परतापगढ़ । इसकी चौहद्दी-उत्तरमें अजमेर, मरवाडा और शाहपुर, उत्तर पूर्वनें जपुर और बुंदी ! पूर्वनें कोटा, और टोंक; दक्षिणमें मध्यभारत पश्चिममें अरावली पहाड़। सन् १९०१ में यहां जनी ६ फी मदी थे। उदयपुर राज्य-इमनी चौहती-उत्तरमें अजमेर मडवाडा और शाहपुर, पश्चिन, नोवपुर और सिरोही । दक्षिणपश्चिममें इंडर राज्य; दक्षिगर्ने इंगरपुर, बांसवाडा, परतापगढ़ । पूर्वमें नीमच ! उत्तरपूर्वनें जपुर । वहां १२६९१ वर्गमील स्थान है। इतिहास-मेवाडके महाराणा अपने दमें बहुत ऊंचे हैं। इनकी उत्पत्ति श्रीरानन्द्रक पुत्र कुशम है। इस वंशने अपनी कन्या किली मुसल्मानको नहीं विवाही, किन्तु उनसे भी सम्बन्ध बन्द किया जिन्होंने कन्या मुममानको दी थी। कुशके कंगनोंका अंतिम राजा अवयन मृमित्र हुआ है। इसकी
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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