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राजपूताना ।
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प्रारम्भ किया | फिर आठवीं शताव्दीमें चौहान और भाटियोंने राज्य किया जो क्रमसे सांभर और जैसलमेर में बसे । दशवीं शताव्दीमें परमार और सोलंकी दक्षिण पश्चिममें बलवान हुए । अब राजपुतानामें तीन वंश प्रसिद्ध हैं-सेसोदिया, भाटिया और चौहान । इनमें से पहले दो तो अपने मूलस्थानोंमें जमे रहे जब कि चौहान सिरोही बूंदी, कोटामें फैल गए । जादोवंशजोंने ११वीं शताब्दी में करोलीमें स्थान जमाया । कछवाहा वंशज ग्वालियरसे जैपुर में सन् ११२८ में आए | राठौर वंशज कन्नौजसे माड़वाड़में १३वीं शताब्दी में आए।
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पुरातत्व - जैपुरके वैराटमें दो अशोक के शिलालेख हैं तथा सन् ई० से तीसरी शताब्दी पहलेका लेख चित्तौड़के पास नगरी स्थानपर है । झालावाड़ में खोलवीपर पहाड़में कटे मंदिर तथा गुफाएं सन् ७०० से ९०० तककी हैं । ये बौद्धोंका पुरातत्व है । 1 जैनियोंके बहुत प्रसिद्ध कारीगरीके मंदिर ११ वीं व १३ वीं शताब्दीके आबू पहाड़में दिलवाड़ेपर हैं तथा इसी कालके अनुमानका एक जैन कीर्तिस्तम्भ वित्तौड़ा में है, तौभी सबसे पुराने जैन मंदिर परतापगढ़ में सुहागपुरा के पास हैं। बांसवाडामें कालिंजरामें हैं तथा जैसलमेर और सिरोहीके कई स्थानोंपर हैं, और पुराने जैन स्मारकों के शेष भाग उदयपुर के पास अहार में तथा राजगढ़ में और अलवर राज्य के पारनगर में हैं ।
हिन्दुओं का पुरातत्त्व बयाना (भरतपुर) में एक पापाणका स्तंभ सन् ३७२ का है। मुकुन्दद्वागमें पंचवी शताब्दीका ध्वंश स्थान है । ११ वीं शताब्दी के ध्वंश मंदिर झालरापाटनके पास