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________________ 1.. -१२६ ] प्राचीन जैन स्मारक । चित्तौड़ के निकट है तथा कालीसंघ नदीके चारों ओरका देश हैं । ग्रीक बादशाहोंमेंसे अपोलोदस और मिनैन्दर इन दोके सिक्के उदयपुर राज्य में पाए गए हैं। दूसरीसे चौथी शताब्दी तक सीढ़िया या शक लोग दक्षिण और दक्षिण पश्चिममें बलवान रहे । गिरनार पर्वतके पास जो १५० सन् ई० का शिला लेख है उसमें वर्णित है कि रुद्रदमन मारु (माड़वाड़) और साबरमती नदीके चहुंओर देशका शासक था । मगधके गुप्त वंशने चौथीसे छठीं शताब्दी तक राज्य किया जिसको राजा तोरमान के आधिपत्यमें श्वेत नोंने नष्ट किया । सातवीं शताब्दीके प्रथम अर्द्ध में थानेश्वरके राजपूत हर्षवर्द्धन और कन्नौनके वैश्य हर्षवर्द्धनने देशमें शासन किया और ना तक विजय प्राप्त की, उसमें राजपूताना भी शामिल था । हुइनसांग चीन यात्री (६२९ - ४५ ) के समय में राजपूताना के चार विभाग थे । (१) गुर्जर - जिसमें बीकानेर, पश्चिम राज्य और शेखावाटी - का भाग शामिल था । (२) वैराट - जिसमें जैपुर, अलवर और टोंकका भाग था । (३) मथुरा - जिसमें तीन पूर्वीय राज्य भरतपुर, धौलपुर और करौली थे । (४) वदरी - जिसमें दक्षिण और कुछ मध्यभारत के राज्य शामिल थे । 1 सातवीं और ग्यारहवीं शताब्दीके प्रारम्भके मध्य में राजपूतानामें बहुतसे वंश उठ खड़े हुए। गहलोट या सेशाद्री वंशज गुजरातसे आए और मेवाड़के दक्षिण पश्चिम भागको ले लिया । उनका सबसे प्राचीन लेख ता० ६४६ का राजपूतानामें मिला है । पीछे रिहरों राज्य किया जिन्होंने अपना शासन जोधपुरके मांदोर में १०५
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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