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मध्य भारत।
[१२१ . (३) सुहागपुर-सहडोलसे २ मील एक ग्राम । यहां एक बड़ा महल है जो पुरानी इमारतोंसे बना है । वहुतसे खम्भे मंदिरोंसे लिये गए हैं। उनमें बहुतसे जैन मुर्ति व पापाणोंके स्मारक हैं। मह प्राचीन जैनियोंका स्थान था। वहुतसी जैन तीर्थकरोंकी मूर्तियां चारों तरफ दिखलाई देती हैं । इस ग्रामसे दक्षिण पूर्व १ मील. पुरानी वस्तीके खंडहर हैं।
यह विलासपुरके पास घाटीके कौनेमें है। चेदी राजाओंके बिल्हारीके शिलालेखमें इसका नाम सौभाग्यपुर है । स्थानीय ठाकुरके घरमें बहुतसे प्राचीन पाषाण हैं उनमें नीचे प्रकार भी पाषाण हैं ।
(१) जैन देवी सिंहासनपर बैठी, भुजाओं में एक जैन बालक है, एक आम्रवृक्षके नीचे बैठी है। वृक्षके ऊपर एक पद्मासन जैन मूर्ति है । उसके ऊपर सिंहासन पर दूसरी पद्मासन जैन मूर्ति है इसके हरतरफ बगलमें एक खड़े आसन जिन हैं व खड़े इन्द्र हैं। (२) एक वठे आसन शासनदेवी है जिसकी १२ भुजाएं हैं। ऊपर पद्मासन मूर्ति श्री पार्श्वनाथकी है । (३) एक सुन्दर मूर्ति ऋपभदेवकी है । वैलका चिह्न है।
(४) रीवांनगर-गीमसौन नामके पुराने नगरसे एक बहुत सुन्दर ख़ुदाईका हार यहां लाया गया है । यह नगर यहांसे पूर्व १२ मील है।
(५) अल्हाघाट-ता० हूजूर-यह प्रसिद्ध स्थान है । इसमें नरसिंहदेव कलचूरी राजाका लेख वि० सं० १२१६ का है।
(६) भूमकहर-ता० रघुराजपुर-सतनासे उत्तर पश्चिम ७. मील। यहां एक पुराना किला है जिसको वघेलोंने बनवाया था ।