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________________ १२० ] - प्राचीन जैन स्मारक । खयाल किया जाता है कि प्राचीन कौसाम्बी नगरका यही स्थान है। यहां एक सुन्दर किला है जिसको रेहत कहते हैं । इसको करणदेव चेदो (१०४०-७०) ने बनवाया था। इसका २॥ मीलका घेरा है । भीतें ११ फुट मोटी हैं व मूलमें २० फुट ऊंची थीं। इसके चारों तरफ खाई थी जो ५० फुट चौड़ी व ५ फुट गहरी. थी। यहां मंदिर अधिकतर ब्राह्मणोंके हैं, यद्यपि कुछ दिगम्बर जैन मूर्तियां चंद्रेहीके पास मिलती हैं । सोननदीके पूर्व एक बड़ा स्थान है व सुन्दर मंदिर हैं। मोरापर तीन समुदाय गुफाओंके हैं जिनको दुरादन, छेवर व रावण कहते हैं । ये चौथीसे नौमी शतान्दीकी हैं। कुछोंमें मूर्तिये हैं। ___ यहांके मुख्य स्थानोंका वर्णन (१) अमरकंटक-सहडोलसे २५ मील एक ग्राम । यह मैकाल पहाड़ीका (नो ३००० फुट ऊँची है) पूर्वीय कोना है। यहांसे नर्बदानदी निकली है ऐसा प्रसिद्ध है । यहां कपिलधाराका जलपतन है । पांडव भीमके चरणचिह्न हैं । यहां खजराहाके समान बहुत ही बढ़िया मंदिर हैं जिनको करणदेव चेदी (१०४०-७०) ने बनवाया था। १४ दूसरे मंदिर हैं। (Cunn : A. S. R. Vol. VII. P. 22 ... . (२) वांधोगढ़-कटनीके पास तालुका रामनगर-यहां पुराना किला है । यह प्राचीन ऐतिहासिक नगह है। जिस पहाड़ी पर यह किला है वह २६६४ फुट ऊंची है । उसीमें वमनिया पहाड़ी शामिल है । १३ वीं शताब्दीमें करणदेव कलचूरी राजकुमारीके साथ वघेलाको मिला ( Cunni. Vol. VII P. 22 )
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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