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मध्य भारत।
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ब्दीके पिछले भागमें कुंवर सोनशाह पोवार या पमारने वसाया था।
यहां बहुत प्रसिद्ध पुरातत्त्वके स्मारक खजराहामें व राजगढ़के पास केननदीके पश्चिम मनियागढ़में हैं । राजगढ़ पुराना किला है इसको अठकोट कहते हैं । जंगलमें बहुतसे ध्वंश स्थान हैं।
(१) खजराहा छत्रपुरके पास । यह मंदिरोंके लिये प्रसिद्ध है । शिलालेखोंमें इसका प्राचीन नाम खजूरवाहक है। चांद भाटने इसे खजूरपुर या खजिनपुर कहा है । नगरके द्वारपर दो सुवर्ण रंगके खजूरके वृक्ष हैं । प्राचीन कालमें यह बहुत प्रसिद्ध जगह थी । यह निझोती राज्यकी राज्यधानी थी जिसको अब बुन्देलखण्ड कहते हैं । हुईनसांग चीन यात्रीने भी इसका वर्णन किया है । यहांके मंदिर सन् ९५० से १०५० तकके हैं । यहांके लेख बहुत उपयोगी हैं । इन मंदिरोंके तीन भाग हैं-(१) पश्चिमीययहां शिव और विष्णुके मंदिर हैं । (२) उत्तरीय-एक बड़ा और कुछ छोटे मंदिर हैं । सब विष्णुके हैं व कई खंड या ढेर हैं। (३) दक्षिण पूर्वीय भाग विलकुल जैन मन्दिरोंसे पूर्ण है। इनमें , चौसठ योगिनी घनटाईका मंदिर सबसे पुराना है । इसमें बड़े सुन्दर खम्भे हैं। इसके शेषांश छठी या ७ वीं शताब्दीके हैं जो ग्यारसपुरके मंदिरोंके समान हैं। एक चंदेललेख सन् ९९४ का है।
(Cunnimgham Vol. II P. 413 & Vol. VII P. 5, Vol. X P. 16, Vol. XT: P.55 and Epigraphica Indica Vol. I P. 121)
कनिंघम जिल्द दोमें है कि यह खजराहा महोवासे दक्षिण ३४ मील है। घंटाई जैन मंदिर नं० २१ में चहुतसी खंडित जैन मूर्तियें हैं । एकपर लेख है संवत ११४२ श्री आदिनाथ, प्रतिष्ठाकारक श्रेष्ठी वीवनशाह भार्या सेठानी पद्मावती । नं० २२