________________
१०६]
. प्राचीन जैन स्मारक ।
महान रक्षक थे । धारपर सन् १०२०में अनहिलवाड़ाके चालूक्य राजा जयसिंहने तथा सोमेश्वर चालुक्य राजाने १०४०में चढ़ाई की तब राजा भोजको भागना पड़ा। .
धारमें बहुतसे प्रसिद्ध मकान हैं । सन् १४०५में जैन मंदिरोंको तोड़कर दिलावरखांने लाट मसजिद बनवाई और उसका नाम लाट इस लिये रक्खा कि एक लोहेका खम्भा या लाट अभी तक बाहर पड़ा हुआ है । यह ४३ फुट ऊंचा था पर अब इसके टुकड़े हो गए हैं। इसकी ठीक उत्पत्तिका पता नहीं है, परन्तु यह ख्याल किया जाता है कि यह अर्जुनवर्मन परमार (सन् १२१०१८) के समयमें शायद किसी युद्धकी विजयकी स्मृतिमें वना होगा।
यहीं अलाउद्दीनके समयमें (१२९६-१३१६) मुसल्मान साधु निजामुद्दीन औलिया हो गया है। राजा भोजका एक विद्यालय था उसको भी १४ वीं या १५ वीं शताब्दीमें और हिन्दुओंके. ध्वंश मकानोंको लेकर मसजिद बना लिया गया है। बहुतसे पाषाण उसमें ऐसे लगे हैं जिनमें संस्कृत व्याकरणके सूत्र लिखे । हैं । यह मसजिद पुराने मंदिरोंके स्थानपर है। यहीं एक मंदिर सरस्वतीका था। जिसको धारानगरीका भूषण माना गया था । दो स्तंभोंपर एक सर्पवन्धमें संस्कृत काव्य लिखा है
(A . R. 1902-3, A. S. R. W. I. 1904-6 B. R.A. S. Vol. XXI P. 339. 54).
नव सहशांक चरित्र पद्मगुप्त कविने रचा है उसमें भोनके पिता सिंधुराजका जीवनचरित्र है, उसमें धारका वर्णन एक श्लोक अच्छा दिया है।