SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्य भारत। [१०३ सुनातखांका पुत्र वाज बहादुर सन् १९६२के करीब स्वतंत्र होगया । इसकी रूपवान स्त्री रूपमती मालवामें अपनी गानविद्या व कविताके लिये प्रसिद्ध होगई है। बहुतसे उसके बनाए गीत अब भी गाए जाते हैं। बाज़ भी गान विद्यामें चतुर था। (२) मनासा-पर्गना बगौड़-तोमरगढ़के नीचे वसा है। (३) नागदा-प० देवास-यहांसे ३ मील | यहां पुराने कोट व पुराने मंदिरोंके शेप हैं । पालनगरमें बहुतसी जैन मूर्तियें देखी जाती हैं । यह पहले बहुत प्रसिद्ध स्थान था । (७) सीतामउ राज्य । यह इंदौरसे १३२ मील है। मन्दसोरसे इसका सम्बन्ध है। यहां तीतरोदमें-जो सीतामऊसे ६ मील पूर्व है-एक श्री आदिनाथजीका श्वे. जैन मंदिर है। [८] पिरावा ष्टेट (टोंक सम्बन्धी)। उत्तर पश्चिममें इन्दौर, दक्षिणपूर्व ग्वालियर है । यहां सन् १९९१में १९ सैकड़ा जैनी थे। नगरके मंदिरोंमें जो शिलालेख हैं उनसे प्रगट है कि यह पिरावानगर ११वीं शताब्दीसे प्रसिद्ध है। (९) नरसिंहगढ़ ष्टेट । इसकी चौहद्दी यह है । उत्तरमें राजगढ़, इन्दौर; दक्षिणमें ग्वालियर, भोपाल, पूर्वमें भोपाल; पश्चिममें ग्वालियर और देवास । यहां ७४१ वर्गमील स्थान है।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy