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________________ ६८] प्राचीन जैन सारक। हैं उनको तम्बोलीके मंदिर कहते हैं । खुदे हुए खम्भे हैं। बड़ा .. मँडप है। वेदीघरका पाषाण द्वार स्वच्छ है। वेदीमें एक पद्मासन जैन मूर्ति है । वेदीकी कोठरीकी छतमें तीन छोटे खुदे हुए आले हैं, मध्यका सबसे बड़ा है वे आदिनाथजी भक्तिमें हैं। दोनों मंदिर दि० जैनोंके हैं। अव भी पूजा होती है, दोनोंमें बड़ा श्री आदिनाथका प्राचीन है। दूसरा भी आदिनाथका है । इसका जीर्णोद्धार हुआ है । अब मूर्तिये नवीन स्थापित हैं।' (२२) किथुली-जिस टीलेपर नवली और तक्षकेश्वर ग्राम. हैं उसके नीचे एक प्राचीन जैन मंदिर है । इस मंदिरका मण्डप जैन चित्रकारीका दर्शनग्रह है । मंडपमें जिनकी मूर्तिये धातुकी व सफेद, काले व पीले पापाणकी हैं। गर्भ गृहमें बड़ा कमरा है जिसमें तीन आले हैं, मध्यमें पद्मासन श्रीमहावीरस्वामी हैं व अगल बगल खड़गासन दि० जैन मूर्तियें हैं । वेदीमें बहुतसी. दि जैन मूर्तियें हैं। मूलनायक एक बड़ी मूर्ति श्री पार्श्वनाथ भगवानकी है। ___ (२३) कुकदेश्वर-रामपुरासे पश्चिम १० मील । नीमचसे झालरापाटन जाते हुए सड़कपर | ग्रामके मध्यमें एक जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथनीका है कृष्ण पाषाणकी मूर्ति है और भी नवीन जैन मूर्तियें हैं। (२४) राजोर-नर्मदा नदीपर-नीमावरसे ५ मील । यहां पुरातत्त्व स्मारक हैं । एक प्राचीन जैन मंदिर है, एक सण्डित जैन मूर्ति अवशेप. है।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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