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________________ मध्य भारत। [६७ (१७) संदलपुर-डि० नीमावर-यहांसे उत्तर १५ मील । ग्राममें मंदिर मूलमें जैनका था उसको हिन्दुओंने सन् १८४१ में महादेवका मंदिर बना लिया । । (१८) सुन्दरसी-जि० महीदपुर-यहां कई प्राचीन जैन मंदिर हैं। (१९) पुरा गिलन-बलियासे कोठड़ी जाते हुए सड़कपर एक ग्राम । यहां १ सरोवरपर ११ वीं या १२ वीं शताब्दीका एक प्राचीन जैन मंदिर है। द्वारके ऊपर तथा मंदिरकी वाई ओर कुछ जैन मूर्तियें हैं। पहली मूर्तिमें श्री महावीर स्वामीके माता पिता हैं जो वृक्षके नीचे बैठे हैं उनके हरएक दासी हैं। आसनपर घुड़सवारोंकी पंक्ति है। वृक्षके ऊपर तीन जैन मूर्तिये हैं। दूसरी मूर्ति खड़े आसन श्री पार्श्वनाथनीकी है। दो मूर्तिये शासनदेवीकी हैं जिनमें लेख है । उसमें महन्तारिकादेवी लिखा है । प्रतिष्ठाकारिका रूपिणी दोनोंमें मस्तक नहीं है । देवी सिंहासनपर बैठी है, एक पग फैला हुआ है। चार हाथ हैं, दाहने हाथमें बच्चा है। नीचे सिंह हैं । सरोवरके पास वहुत जैन मूर्तियें हैं। (२०) चैनपुर-भानपुराका चंद्रावत किला जो एक बड़े टीलेके नीचे है । ग्रामसे दूर व भानपुरसे नवली जाते हुए गाड़ीके भार्गके पास एक बड़ी दि० जैन मूर्ति भूमिपर विराजित है। यह '१३ फुट ३ इंच ऊँची व ३ फुट ८ इंच चौड़ी है। (२१) संधारा-नीमचसे झालरापाटन जाते हुए पुरानी फौजी सड़कसे ३ मील । यहां बहुत प्राचीनता है । यहां दो जैन मंदिर
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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