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________________ ६६ ] प्राचीन जैन स्मक ब्राह्मणों में द्वेष था । एक जैन मंदिरको अब रामका मंदिर ब्राह्मणोंने मान लिया है और रामको "जैन मंजन जवरेश्वर राम" कहते हैं। यह स्थानीय कहावत है कि १४वीं शताब्दी में कोथड़ी में बहुत जैनलोग रहते थे उनके बनाए हुए मंदिर थे । जैनियोंमें और सर्कारी अफसरों में कुछ गैर समझ होगई तब उन्होंने नगरको छोड़ दिया और थोड़ी दूर जाकर बसगए, उसको भी क्लोदिया नाम दिया । हिन्दुओंने जैन मूर्तियें मंदिरसे हटा दीं और उनके स्थानपर राम लक्ष्मण सीताकी मूर्तियें रख दीं । · अभी भी जैन लोग कोठड़ीमें पूजाके लिये आते हैं, परन्तु जबतक कोठड़ी परगनेमें रहते हैं वे कुछ खाते पीते नहीं हैं, पूजाके पीछे वे पिरावा ग्रामनें जाकर भोजन करते हैं । (१३) माचलपुर - पर्गना जीरापुर जि० काली संघले पूर्व ६ मील । सरोवरपर दो जैन अच्छी कारीगरी है । रामपुर - भानपुरा मंदिर हैं जिनमें (१४) मोरी - प० भानपुर जिला रा० भा० | यहां कई बहुत सुन्दर जैन मंदिरोंके अवशेष हैं । एकमें लेख १२ वीं शताब्दीका है। इन मंदिरोंको नाइके घोरी बादशाहोंने नष्ट किया था । (११) नीमावर - पर्ग ० नीमावर - नर्मदा नदीपर, अलेवरुनीने ११ वीं शताब्दी में इसका नाम लिया है। यहां परमारोंके समयका लाल पाषाणका एक सुन्दर जैन मंदिर है । (१६) रायपुर - पर्ग० सुनेल जि० रा० भा०- झालरापाटनले दक्षिण १२ मील | यहां ग्रानमें प्राचीन जैन मंदिर हैं ।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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