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________________ ६४ ] प्राचीन जैन स्मारक। सं० १२३४ फागुन वदी ६ है । एक त्रिकोण पाषाण पड़ा है जो ४ फुट ३ इंच लम्बा २ फुट ४ इंच ऊंचा है। ऊपर ? मूर्ति हैं। ऊपर छत्र इंदुभीवाजे व गंधर्वदेव हैं। यहां दतोनी नामकी धारा है जिसके घाट और सीढ़ियोंपर जैन मंदिरके पापाण लगे हैं। जो पहाड़के नीचे बीजेश्वर महादेवका मंदिर है उसकी भीतोमें ‘पद्मासन और खडगासन जन मूर्तियां लगी हैं तथा जैन मंदिरके शिखरको तोड़कर इस मंदिरका शिखर बनाया गया है। (4) चोली-पर्गना महेश्वर जि० नीमाड़-महेश्वरसे उत्तर 'पूर्व ८ मील-यहां कुछ प्राचीन जैन मंदिरोंके वंश हैं। (६) देहरी-पग० चिकल्दा नि. नीमाइ-चिकलदाने उत्तर १४ मील । यहां श्री पार्श्वनाथका एक जैन मंदिर है। (१) देपालपुर-इन्दोरमे उत्तर पश्चिम ३० मील | इस नगरको धार वंशके देवपाल परमार (सन् १२१८-१९३०) ने वसाया था। कई जैन मंदिर हैं जिनमें से दो वि०म० १९४८ और १६५९ है। देपाल और बनदियाके मध्यमें एक कई नीलका वड़ा सरोवर है। इसको राजा देवपालने बनवाया था जिसके तटपर एक प्राचीन बड़ा जैन मंदिर है जो वनदिया ग्राममें है। जिसमें लेख है कि श्री आदिनाथकी मूर्ति वमाख मुदी ३ मंगलवार मं० १९४८ को स्थापित की गई थी। . (८) ग्वालनघाट-जि० नीमाड़, सदवा किलाने १० मील। यहां आधील जाकर वीजासन देवीका मंदिर है । चतमें मला भरता है। . . .
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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