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प्राचीन जैन स्मारक।
सारी व रेशमी पाड़की धोतीके बनानेके लिये प्रसिद्ध था।
सं० नोट-यहां पोरवाड़ दि० जैनियोंका मुख्य स्थान रहा है।
(३) ऊन-परगना खड़गांव-यहांसे ११ मील । नीमाड़ जि० बहुत प्राचीन स्थान है। यहां १२ वीं शताब्दीके जैन मंदिर हैं। एक मंदिरमें धारके परमार राजाओंका लेख है। यह नरमदाके दक्षिण सनावद स्टेशनसे ६० मील है। खजराहाके मंदिरोंके समान यहां भी विशाल मंदिर जैन और हिन्दू दोनोंके हैं। जैन मंदिरोंको विना सम्हालके छोड़ दिया गया है। ये मंदिर दिगम्बर जैनियोंके हैं जिनके माननेवाले इस प्रदेशमें बहुत कम रह गए हैं परन्तु 'हिन्दू मंदिरोंमें अब भी पूजा पाठ जारी है। ग्रामकी उत्तरी हद्दकी
ओर जैन मंदिर हैं जिनमेंसे दो मंदिरोंको चौवारादेरा कहते हैं। चौबारा देहरा नं० २ का शिखर कुछ गिर गया था । यह बहुत ही उपयोगी मंदिर सर्व समूहके मध्यमें है क्योंकि इसमें मंदिरोंके बननेकी मितीका पता लगता है। इस मंदिरके अन्तरालमें तीन 'शिलालेख हैं, जिनसे प्रगट होता है कि मुसल्मानोंके अधिकारके पहले यह मंदिर बच्चोंके लिये विद्यालयके काममें आता था। एक छोटे वाक्यमें मालंबाके उदयदित्य राजाका नाम है जिससे प्रमाणित होता है कि ये मंदिर उसके समयसे पहले बने थे । दूसरे लेखमें मात्र संस्कृत व्याकरणके कुछ सूत्र हैं, तीसरा लेख एक सर्पके ऊपर सर्पवन्ध रचनामें अंकित है, इसमें स्वर और व्यंजन अक्षर दिये हैं। चौवारा देहरा नं. १ में जैन मूर्तियां नहीं रही हैं किन्तु चौवारा देहरा नं० २ और ग्वालेश्वरके जैन मंदिरमें दिगम्बर जैनोंकी बड़ी २ मूर्तियां हैं। दोनों ही मंदिर मध्यका