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मध्य भारत।
[१ बहुत ही सुन्दर है जिसमें ५वीं, छठी शताब्दीके मध्यकी बौद्ध मूर्तियां हैं । ब्राह्मण गुफाएं ८ वीं और ९ शताब्दीके मध्यकी हैं । नं० १३की गुफाको छोटाबाजार कहते हैं। यहां १५ मूर्तियां हैं जो जैन या वौद्धकी होंगीं। ऐसी गुफाएं पोलाद नगर (गरोटके पास), खोलवी, आवर, वेनैगा (झालावार), हातीगांव, रैणगांव (टोंक) में हैं। ये सव २० मीलकी चोड़ाईमें हैं । धमनेरकी पहाड़ी १४० फुट ऊंची है। घेरा २ या ३ मीलकी है। सबसे बड़ा दर्शनीय एक पाषाणका मंदिर धर्मनाथनी पहाड़ीपर है । यह एल्लूराके कैलास मंदिरके समान है। यह जैनका होना चाहिये, जांचकी जरूरत है।
(२) महेश्वर-नीमाड़ जिला, नर्मदानदीके उत्तर तटपर प्राचीन नगर है । इसको चोली महेश्वर कहते हैं । चोली इसके उत्तर ७ मील पर है। इसका नाम रामायण, महाभारत व वौद्ध साहित्यमें आया है। यह दक्षिण पैथनसे श्रावस्ती जाते हुए. मार्गमें पड़ता है। उस मार्गमें मुख्य ठहरनेके स्थान हैं। महिष्मती, . उजैन, गोणद्ध, भिलसा, कौसम्वी व साकेत इस नगरीका हैहयवंशी राजाओंसे जो चेदीके कलचूरी राजाओंके बुजुर्ग थे प्राचीन सम्बन्ध रहा है । कलचूरियोंके अधिकारमें मध्य भारतका पूर्व भाग नौमीसे बारहवीं शताब्दी तक था । इस वंशका प्रसिद्ध राजा कार्तवीर्यार्जुन इस नगरीमें रहता था ऐसा माना जाता है। पश्चिमी चालुक्य राजा विनयदित्यने सातवीं शताब्दीमें यहांके हैहय वंशियोंको पराजित किया तब महिप्मती उसके अधिकारमें आगया । इसके नीचे हैहय राजाओंने गवर्नरके रूपमें कार्य किया। कात्यायनने पाणिनी व्याकरणकी टीकामें इस नगरीका नाम लिखा है। यह नगरी रंगीन