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________________ ८२] प्राचीन जैन स्मारक । पुत्र अभिमन्यु था जिसकी महिमा महाराज भोजने की थी, उसका पुत्र विजयपाल था, विजयपालका पुत्र विक्रमसिंह था । इसीके राज्यमें यह शिला लेख लिखा गया। इस कच्छपघात वंशके दो शिलालेख और हैं। एक वि०सं० ११५० का ग्वालियरके सासवहु मंदिरपर है जिसमें लक्ष्मण, वजदामन, मंगलराज, कीर्तिराज, मूलदेव, देवपाल, पद्मपाल और महीपाल राजाओंका क्रम है। दूसरा नरवरका ताम्रपत्र है जो वि० सं० ११७७का वीर- ' सिंह देवका है जो गगणसिंहदेव फिर शारदसिंहदेवके पीछे हुआ था । ये भिन्नर वंश हैं जो ग्वालियरके आसपास राज्य करते थे। इस लेखमें जो राजा विजयपाल हैं यह वही नृपति विजयाधिराज हैं, जिनका वर्णन बयानाके शिलालेख वि० सं० ११०० में है। यह वयाना दूबकुण्डसे ८० मील उत्तर है। यह बयानाका लेख भी जैन शिलालेख है। यहां जो राजा भोजका कथन है यह मालवाके परमार भोजदेव ही हैं । लेखमें जो विद्याधरदेवका कथन है यह चंदेलके राजा हैं जो गंडदेवके पीछे हुआ व इसके पीछे विनय पालदेवने राज्य किया है। दूधकुण्डका प्राचीन नाम चडोभ था । लाइन ३२से ३९में जैन व्यापारी रिपि और दाहड़की वंशावली दी है | जायसपुरसे आए हुए वणिक वंशरूपी आकाशने सूर्य के समान 'प्रसिद्ध धनवान सेठ जासूक था जो सम्यग्दृष्टी था व श्रीजिनेन्द्र चरणकी पूनामें व श्रद्धानपूर्वक पात्रोंको चार प्रकारका दान देनेमें लीन था। इसका पुत्र जयदेव था जो जिनेन्द्रकी भक्ति में भ्रमर
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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