________________
८.]
प्राचीन जैन लोरका गकि लिये आधार रूपये व जिसकी प्रभा चंद्रज्योतिको जीन्ती श्री द जो अन्य राजाओं के समान गिनता था व जिमने बड़े विजयी राजाओंको जीत लिया था व जिसका धनुष-बाण कमी वंचित नहीं होता था।
जो प्रवीणता यह घोड़े व रोंक चलने व गावकि प्रयोगादिमें दिखाता था, उसनी महिमा प्रसिद्ध भोजराजान वर्णन की थी. निमक छत्रको देखने नाबसे बड़े २ मानी त्रु भयो माग जाने थे. ऐस गनांके गुणोंजो कान भरनेमें तीन लोकमें कौन कवि मन्ध हो सका है।
जन का प्रयाण करता था मोटे २ रजक वाइल पृथ्वीसे उसने ना भूनिएर योनि खुर पड़ने थे। और वे सूर्यमंडलको भान्छादित करते हुए यह नदिन्य वागी कल्ले थे कि वास्तव में अन्य नत्र नेनान्वयों ने इसके सामने नट हो जावेगा।
इन प्रसिद्ध गाजाला पुत्र कुमार विजयपाल था जिमने शरदकालक चन्द्रमाको किरणक समान प्रकाशनान अमर्यादित यशने
हुँदिशाको च्यात कर दिया था और निमने पृथ्वीमंडलक मत्र कशा नाश कर दिया था।
यह राज विद्वानोंक हृदय में बहुत आश्चर्य उत्पन्न करता था जब यह देवियोंमे देखने योग्य युद्धन कनसे सर्व शत्रुओंको नय उत्पन्न कर देता था। यद्यपि वह स्वयं उनसे पृथ्वी नहीं लेता था त्यापि अपनी पृथ्वीन लेशनात्र भो उनको नहीं लेने देता था। इस रानान पुत्र प्रसिद्ध विक्रमसिंह हुआ जिसका नाम पराक्रम, मिहने समान होनेने सार्थक था, क्योंकि अपने वीय्यक प्रभावमे