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________________ प्रथम भाग । ७६ वंशका स्थापक और दीक्षा लेनेके बाद भगवान् ऋषभका गणधर हुआ, अंतमें मोक्ष गया 1 (१) हरि - हरिवंशका स्थापक, महा मंडलेश्वर राजा हुआ । (i) अकपन - नाथ वंशका स्थापक, सुलोचनाका पिता, सबसे पहिले स्वयंवरकी पद्धतिको चलानेवाला, काश का नरेश था दीक्षा लेकर मोक्ष गया । इसे मरत पिताके समान मानते थे । (६) काश्यप - उग्र वशका स्थापक, महा मंडलेश्वर राजा था। इसका उपनाम मघवा था । (७) कच्छ- महाकच्छ-इन दोनोंको भगवान् ऋषमने अधिगन बनाया था । ये दोनो भगवान्के स्वसुर थे। दीक्षा लेने पर ये दोनो भगवान् गणधर हुए। पहिले ये तपसे भ्रष्ट हो गये थे। पर पीछे फिर तप धारण याथा । (८) मरीच - भगवान का पौत्र सांख्य मतका प्रवर्तक | 1 (९) नमि, विनमि ये दोनो भगवान ऋषभदेवके रिलेदार थे । भगवानूने अपने कुटुबियों मेगज्य वितरण कर जब तप धारण किया तब ये भगवान्ये राज्य मांगने आये । भगवान् मौन धारण कर तर कर रहे थे। इन्होने बहुत प्रार्थनायें कीं फिर धरणेदने आकर इन्हे विन्या पर्वतके विद्याधरोंको दक्षिण और उत्तर श्रेणीका राजा बनाय | पहले ये भूमिगौवरी थे परंतु घणेन्द्रने कई विद्या ने कर इन्हे विद्याधर वनाया था। फिर गणवर हुए और मोक्ष गये !
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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