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________________ ७३ प्राचीन जैन इतिहास । सबसे पहिला युद्ध यही हुआ । इसमें जयकुमारकी जय हुई, और उसने अर्ककीर्ति व उसके साथ विद्याधरों और राजाओं को बांधकर सुलोचनाके पिता अकंपनके पास मेन दिया जिन्होंने उन्हें छोड़ा व अकीर्तिको शांत करनेके लिये अपनी छोटी बहिन अक्षमाला उसे दी। W (११) जबतक युद्ध पूर्ण नहीं हुआ सती सुलोचनाने आहारका त्यान किया और भगवान की मूर्ति के सम्मुख खड़ी रहकर ध्यान दिया । 4 (११) युद्ध पूर्ण हो जाने पर जय जयकुमार, सुलोचन के सहित भकंपन महाराजके घर से अपने घरको नाने लगे तच राम्ते में ठहर कर जयकुमार, महाराज भरतसे मिलने गये । जयकुमारके मनमें शंका थी कि शायद अककीर्तिसे युद्ध करनेके कारण चक्रवर्ती नाराज होंगे पर भग्तने जयकुमारका बहुत आदरसकार किया । (१४) चक्रवर्तीसे मिलकर जय जयकुमार आये तत्र गंगा नदीमें उस काली देवीने जो जयकुमारके कमरले तिर कर किये गये पपका जीव था जयकुमारके हाथी के पाँचोंको पकड़ लिया और बहाने लगी पर जयकुमार और सुलोचनाके भगवानका ध्यान करनेसे गंगा देवीने आकर उस ममय जयकुमारको बचाया | (१५) जयकुमार ने कई वर्षों तक राज्य किया और महारानी सुलोचनाके साथ सांसारिक सुख भोगे । एक दिन महलपर ठे हुए चारों ओर देख रहे थे हसी समय किसी विद्याधरका विमान आकाशमें देखकर दोनोंको जातिस्मरण नामक ज्ञान उत्पन ~
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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