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________________ ३७ भाचीन जनै इतिहास। पर स्थापन कर उनका राज्याभिषेक किया। और बाहुबलीको युवराज पद दिया। (२९) वैराग्य होते ही इन्द्रोंने भगवानका अभिषेक किया और बड़ा भारी उत्सव मनाया । इस समय भगवानकी आयु ८६ लाख पूर्वकी थी। (३०) भगवान् जब तप धारण करनेको वनमें जाने लगे लब प्रजाको बहुत दुःख हुआ। कुछ दूर तक राना लोग भगवा के साथ गये फिर इन्द्र और देवोंके साथ भगवान् बनको चले गये। (३१) चैत्र वदी नोमीके दिन भगवान ऋषभने सिद्धार्थ नामक बनमें जो अयोध्यासे न तो दूर था और न बहुत पास ही था, जाकर सब कुटुम्बियोंकी आज्ञापूर्वक दीक्षा धारण की । दीक्षा लेते समय सब परिग्रहोंका त्याग किया, नग्नमुद्रा धारण की और केशोंका पंचमुष्टि लोंच किया। भगवान के साथ चार हजार राजाओंने भी दीक्षा धारण की । इन लोगोने मगवानका अभिप्राय तो समझा नहीं था केवल भगवानकी मक्तिसे ही दीक्षा धारण की थी । दीक्षा लेनेके बाद इन्द्रोंने भगवानकी पूजा की। भगवानने पहिले छह मासका उपचाप्त धारण करनेकी प्रतिज्ञा कर तप करना प्रारंभ किया, तप धारण करते समय भगवानको मनापर्ययज्ञानकी उत्पत्ति हुई । इस ज्ञालसे मनकी गति जानी जाती है। (३२) जिन राजाओंने भगवानके साथ दीक्षा ली थी वे दुःखोंको सहन न कर सके अतएव वे लोग फल फूल खाने लगे। उनसे भूख न सही गई। महाराना भरतके डरसे ये शहरों
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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