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________________ प्रथम भाग। . ३८ नहीं भाते थे । इन लोगोंने भिन्न भिन्न भेष धारण कर लिये थे। किसी ने लंगोटी लगा ली थी, कोई दंड लेकर दंडी बन गया था, किसीने तीन दंडोंको धारण किया था, इस लिये उसे लोग त्रिदंडी कहते थे। (३३) इन लोगोंक देव भगवान् ऋषभ ही थे । ये उन्हींक चरणोंकी पूजा करते थे। फिर भगवान्के पोते-पुत्रके पुत्र मरीचीने योग शास्त्र और सांख्य शासकी रचना की और वहतसे लोगोंको अपनी ओर झुकाया। (३४) भगवान्ने छह महीनोंतक बड़ा ही कठिन तप किया। भगवाननी जटायें बह गई थीं। भगवानकी शांतिका वनके पशुओं पर यहातक असर पड़ा था कि हिरण और सिंह एक स्थानपर रहते थे और हिरणको सिह कोई कष्ट नहीं पहुंचाता था। (३५) छह माह पूरे हो जानेपर भगवान आहारके लिये नगरमें गये परन्तु माहार देनेकी विधि उस समय कोई नहीं जानता था । मगवानका अभिप्राय न समझ कोई कुछ और कोई कुछ कर भगवान के सन्मुख रखता था परंतु भगवान उनकी ओर देखने तक नहीं थे मंतमें जाकर जब करीब सात माहसे कुछ दिन उपर हो गये तब वैशाख शुदी तीनने अरुनागल देशके राजा मोम्प्रभुने छोटे भई युवगन श्रेयांसने जातिन्मरण-पूर्व माका ज्ञान हो जो विपशु-रसका माहार दिया इससे उस गनारे यहा इन्त्रीने देवाने पंचायत्रं किये थे। (१६) दिन भगवान विहार करने काने पुरिमताल नाना न पाबा नानक बनने जाने और वहा
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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