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________________ १९ प्राचीन जैन इतिहास | कप देने लगे 'थे, अतएव इन्होंने उस विवादको दूर किया और t फिर नये प्रकारसे वृक्षोंकी हद्द बाधी । " T (:) असंख्यात करोड़ वर्षोंके बाद फिर सातवें कुलकर विम.. लवाहन हुए । इन्होंने हाथी, घोडा, ऊँट, बैल आदि सवारी . करने लायक पशुओं पर सवारी किस ढंगसे करना, यह बताया । ● (८) इनके असंख्यात करोड वर्षों के . 1 बाद आठवें कुलकर चक्षुष्मान नामक हुए। इनके समय के पूर्व माता पिता अपनी संतानकी उत्पत्ति होनेके साथ ही मरण कर जाते थे पर इनके समय से संतान उत्पन्न होनेके क्षण भर बाद मरने लगे । इन्होंने लोगों को समझाया कि संतान क्यों होती है । + (९) फिर इनके असंख्यात करोड वर्षोंके बाद नौवें कुलकर यशस्वान हुए । इनके समय में माता पिता कुछ समय सतानके साथ ठहर कर फिर मरते थे । इन्होने संतानको आशीर्वादादि देनेकी विधि बताई । इ के सामने सतानका नाम रखा जाने 7 लगा । ( १० ) असंख्यात करोड वर्षो बाद दशवें मनु अभिचन्द्र नामके हुए । इनके समयमें प्रजा अपनी संतान के साथ क्रीडा करने लगी थी । इन्होंने क्रीडा करने व संतान पालनकी विधि ' चताई थी । (११) इनके सेकड़ों वर्षों बाद चंद्राभ नामके ग्यारहवें कुलकर उत्पन्न हुए इनके समय में प्रजा संतानके साथ पहिलेसे और अधिक दिनों तक रहकर फिर मरण करती थी ।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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