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________________ प्रथम भाग १८ देखकर उस समयके मनुष्योंने फिर भय खाया और कुलकरके पास आये । इन्होंने उन्हें समझ या । तथा ज्योतिश्चक्र ( सूर्य, चंद्र, ग्रह नक्षत्र आदिका समूह ज्योतिश्चक्र कहलाता है ) का मन हाल और रात्रि, दिन, सूर्यग्रहण, चद्रप्रहण, सूर्यका उत्तरायण दक्षिणायन होना आदिका भेद बतलाकर ज्योतिष विद्याकी प्रवृत्ति की। (३) इनके भी असंव्यात करोंडो वर्ष बाद क्षेमंकर नामके तीसरे कुलकर उत्पन्न हुए । अव तक सिंहादि क्रूर जन्तु शांत थे । पर इनके समयमें उनमें कुछ करता आई और वे मनुप्योको तकलीफ देने लगे । पहिले मनुष्य इन पशुओंको साथ रखते थे । परंतु क्षेनकरके आदेशसे अब उनसे न्यारे रहने लगे और उनका विश्वास करना छोड़ दिया । (१) तीसरे कुलकरके असंख्यांत करोड़ वर्षों बाद क्षेमवर नाम्के थे मनु हुए। इनके समयमें सिहादि जतुओंको क्रूरता और भी अधिक बंद गई और उसके लिये इन्होंने मनुष्यों को लाठी आदि रखनेका उपदेश दिया। (६) चौथेके असंख्यात करोड़ वर्षों बाद पांचवे सीमकर नामके मनु हुए। इनके समयमें कल्पवृक्ष बहुत कम हो गये थे और फल भी थोडा देने लगे थे अतएव मनुप्यों में विवाद होने लगा · इन्होंने अपनी बुद्धिसे मनोकी हद्द बांध दी और अपनी इरके अनुमार मनुप्य उनका उपयोग करने लगे। (E) फिर मसंख्यात करोड़ वर्षोके पश्चात सीधर मनु हुए। इनके समयमें कल्पवृक्षोंके लिये विवाद और भी अधिक वह गया स्था के कल्पवृक्ष बहुत कुछ घट गये थे और फल भी बहुत
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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