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________________ प्रथम भाग । (१२) फिर कुछ समय बाद बारहवें कुलकर मरदेव नामके हुए। उस समयकी व्यवस्था सब इनके आधीन थी। इन्होंने जल मार्ग में गमन करने के लिये छोटी बड़ी नाव चलानेका उपाय बताया । पहाडोंपर चहनेके लिये सोढ़िया बनाना बताया। इन्हीक समयमें छोटी, चडी कई नदियों और उपसमुद्र उत्पन्न हुए । व मेघ भी न्यूनाधिक रीतिसे वासने लगे। इस समय तक स्त्री और पुरुष दोनों युगल उत्पन्न होते थे। (१३) फिर कुछ समय बाद तेरहवें कुलकर प्रसेनजित हुए। इन्होंके समयमें संतान जरायुसे ढकी उत्पन्न होने लगी। इन्होंने उसके फाइनेका उपाय बताया । प्रसेनजित कुलकर अकेले ही उत्पन्न हुए थे इन्हके पिताने विवाहकी पद्धति प्रारभ की। (११) इनके बाद चौदहवें कुलकर नाभिराय उत्पन्न हुए। इनका हाल आगे एक स्वतंत्र पाठमें दिया जायगा। (१५) इन कुलकमसे किसीको अवधिज्ञान होता था और किसीको जातिम्मरण होता था प्रजाके जीवनका उपाय जानने के कारण ये मनु कहलाते हैं । इन्होंने कई वंशोंकी स्थापना की रात कुलकर वहलाते हैं । इन कुलकरोंने दोषी मनुप्योंको दंड देनेका विधान भी किया था और वह इस प्रकार था - - - १ परिमित देश, क्षेत्र, काल और भाव संबंधी तीनों कालका जिसने भान हो उसे अनधिज्ञान कहते है। २ जातिस्मग्ण एक प्रकारका बान होता है जिनसे भूतकालका स्मरण होता है।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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