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________________ १०७ प्राचीन जैन इतिहास। ८१ गणधर पूर्वज्ञानः घारी . १४००. in" . ५९२०० शिक्षक मुनि ७२०० अवधि ज्ञानी । ७००० केवलज्ञानी १२००० विक्रिया ऋद्धिक धारक' . ७६०० मनःपर्यय ज्ञानी ५७०० वादी मुनि ३८०००० घरणा मादि मार्यिकाएँ२००००० श्रावक . ४०.००० श्राविकाएँ (१४) समस्त आर्यखडमें विहारकर जब आयुमें एक मास शेष रहा तब आप सम्मेदशिखर पधारे और शेष काँका नाश कर आसोज सुदी अष्टमीको एक हजार साधुओं सहित सम्मेदशिखरसे मोक्ष गये । आपके मोक्ष मानेपर इन्द्रादि देवोंने निर्वाण कल्याणक उत्सव मनाया। (१५) भगवान् शीतलनाथके तीर्थके अंतिम समयमें भद्दलपुर नामक ग्रामके मेघरथ राजाने दान करनेका विचार मंत्रीसे प्रगट किया ।मंत्रीने शास्त्र, अभय, आहार, औपधि इन चार दानों के करनेकी सम्मति दी परंतु राजाने नहीं मानी और अपने पुरोहित भूतिशर्मा ब्राह्मणके पुत्र मुंडशालायनने हाथी, १ एक तीर्थकरके मोक्ष जाने के बाद दूसरे तीर्थकरके मोल जानेतकका बीचका समय पहिले तीर्थकरका तीर्थसमय कहलाता है ।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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