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________________ प्रथम भाग | १०६ (४) माघवदी वारसको आपका जन्म हुआ । इन्द्रादि देवोंने मेकपर ले जाना, अभिषेक करना मादि जन्म कल्याणकका उत्सव किया । (५) आपके साथ खेलनेको स्वर्गसे देव माते थे । और वस्त्राभूषण भी स्वर्ग से ही आया करते थे । (६) आपकी आयु एक लाख पूर्वकी थी और नव्वे धनुष ऊँचा सुवर्णके समान शरीर था । (७) माप पच्चीस हजार पूर्व तक कुमार अवस्थामें रहे 1 आपका विवाह हुआ था | (८) पचास हजार पूर्व तक आपने राज्य किया । (९) एक दिन आप क्रीड़ाके लिये जब वनमें गये तत्र पानीसे लदे हुए बादलोंको देखा पर तत्काल ही उन बादर्लोके विखर जानेसे आपको जगतकी अनित्यताका ध्यान हुआ और वैराग्य चितवन किया। तब लौकांतिक देवने आकर स्तुति की। (१०) माघ वदी द्वादशीको मापने तप धारण किया । इन्द्रदि देवोंने तप कल्याणक उत्सव मनाया । (११) पहिले दो दिनका उपवास धारण किया जिसके पूर्ण होनेपर अरिष्ट नगर के राजा पुनर्वसु के यहाँ आहार लिया । राजा पुनर्वसु के यहा इन्द्रादि देवोंने पंचाश्चर्य किये । " (१२) तीन वर्षतक तपकर मिती पौष वदी चतुदशी के दिन बीलके वृक्षके नीचे आपको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ | इंद्रादि 1 देवोंने केवलज्ञानका उत्सव किया । समवशरणकी रचना की । (१३) समवशरण समामें इस प्रकार चतुर्विध संघके मनुष्य थे |
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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