SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम भाग) घोडा, कन्या, सुवर्ण आदि दश प्रकारका दान वामणादिको देनेकी सम्मति दी और यश व पुण्य. भादिका लोभ बताया । गृहस्थों रचित ग्रथोंमें इन दानोंकी विधि बतलाई । तर रानाने दश रकारके दान दिये । इसी समयसे ब्राह्मावणे भन धर्मका द्रोही होने लगा और इसी समयसे चार दानोंकी बजाय हाथी, घोड़े आदिका दान शुरू हुआ। पाठ वावीसवा। भगवान श्रेयॉसनाथ (ग्याहरवें तीर्थकर) (१) भगवान् शीतलनाथके मोक्ष जानेके एकसो सागर और छामठ लाख छब्बीस हजार वर्ष कम एक करोड सागर बाद आपका जन्म हुआ । आपके जन्मसे अस्सी लाख वर्ष कम आधे पक्ष्य पहिलेसे ही धर्म मार्ग बंद हो गया था। (२) ज्येष्ठ वदी छठको आप गर्भमें आये । माताने सोलह स्वप्न देखे । इन्द्रोंने आकर गर्भ कल्याणक उत्सव किया । गर्भ में आनेके छह मास पूर्वसे जन्म होने तक पंद्रह माह देवोंने रत्न वर्षा की। (३) आपके पिताका नाम विष्णु और माताका माग नंदा देवी था पिता विष्णु सिंहपुरके राजा थे । वंश इसाकु और गोत्र काश्यप था। (४) फागुन वदी ग्यारसके दिन आपका जन्म हुआ। आप १ वर्तमान सिंहपुर वनारसके पास है।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy