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________________ प्रथम भाग । ९६ की । इन्होंने तप कल्याणक उत्सव मनाया। इस समय आपको मन:पर्ययज्ञान उत्पन्न हुआ । (१०) दो दिन उपवासकर आपने वर्डमान नगरके राना सोमदत्त के यहां आहार लिया | तब इन्द्रादि देवोंने सोमदत्तके यहाँ पंचाश्रये किये । 耳で (११) छह माह तक घोर तपकर त्र सुदी तेरलको आप केवलज्ञानी हुए । चार घातिया कर्मोका नाश किया । देवोंने समवशरणकी रचना की और केवलज्ञान कल्याणकका उत्सव किया । (१२) भगवानकी समवशरण सभानें इस भांति चतुर्विषसंघके मनुभ्य थे । १०० चत्रचामर आदि गणधर २३०० पूर्वज्ञान के धारक २,६९,००० शिक्षक साधु १०,००० अवधि - ज्ञानके घारक १२,००० केवलज्ञ नी १६,८०० विक्रिया ऋद्धिके चारक १०३,०० मन पर्यय ज्ञानके धारक ९,६०० वादी मुनि ४,२०,००० आर्यिका १००,००० श्रावक ५००,००० श्राविकाएं (१३) समस्त भार्यखड में विहारकर जब आयुमें एक माह
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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