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________________ ९६ भाचीन जैन इतिहामा (२) आप माघ वदी छठको कोशांबी नगरीके राना मुकुरटवरकी रानी सुसीमाके गर्भ में आये। गर्भमें आनेके छह मास पूर्वसे और गर्भके नौ मास तक देवाने रत्न वर्षा की और गर्ममें थानेपर पूर्वके तीर्थंकरोंके समान गर्भ कल्याणक उत्सब किया । माताको सोलह स्वप्न पूर्वके तीर्थंकरोंकी माताओंके समान आये। (३) आपका वंश इक्ष्वाकु और गोत्र काश्यप था । (४) आपका जन्म कार्तिक कृष्णा त्रयोदशीको तीनों ज्ञान सहित हुआ, जन्म होनेपर पूर्वके तीर्थकरेंक समान इन्द्रादि देवोंने जन्म कल्याणक उत्सव मन या। (६, भगवान क साथ खेलनेको बालक रूप धारणकर स्वर्गसे देव माया करते थे । वस्त्राभूषण भी स्वर्गसे ही आते थे । (६) आपकी आयु तीस लाख पूर्वकी थी । शरीर अढ़ाईसो धनुष्य उँचा था। (७) साड़े सात लाख पूर्वत माप कुमार अवस्थामें रहे बाद भाप अपने पिताके राज्य सिंहासनपर बैठे। आप पट्टबंध रामा थे। .. (८) साड़े इकवोस लाख पूर्व सोलह पूर्वाग समय तक आपने राज्य किया । आप विवाहित थे। (९) एक दिन राजसमामें आपने सुना कि सेनाके मुख्य हस्तीने खाना पीना छोड़ दिया है तब अवधिज्ञानसे अपने पूर्वभवोंको न नकर ससारको पनित्य समझ कार्तिक वदी तेरसको एक मार रानाओं सहित मनोहर नामक बनमें आपने दीक्षा पारण
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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