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________________ प्राचीन जैनइतिहास | वाकी रहा तब आप समेदशिखरपर आये । इस समय दिव्यध्वनिका होना बंद होगया था। इस एक माइके समय में शेष कर्मोंका नाशकर भगवान् फागुण वदी चतुर्थीके दिन एक हजार राजाओं सहित मोक्ष पधारे | इन्द्रादि देव ने आकर शव - दाहकी क्रिया की और निर्वाण कल्याणक किया । १७ पाठ अठारहवाँ । सुपार्श्वनाथ (सातवें तीर्थंकर) (१) पद्मप्रभुके हजार क्रोड़ सागर बाद भगवान् सुपार्श्वनाथका जन्म हुआ । (२) आप भादों वदी छठको माता के गर्भ में आये । गर्भमें आनेपर माताने पूर्व तीर्थकरों की माताओके समान सोन्ह स्वप्न देखे । गर्भमें अनेके छह माह पूर्वसे और गर्भ रहन के समय तक देवोंने रत्नवर्षा की, मालावी सेवाके लिये देवियां रखीं, आदि गर्म कल्याणक उत्सवके कार्य इन्द्रादि देवोंने किये । (३) आपकी माताका नाम पृथ्वीषेणा और पिताका नाम सुप्रतिष्ठ था । (४) मापका वश इक्ष्वाकु और गोत्र काश्यप था । (५) आपके पिता वाराणसी - काशी के राजा थे । (६) आपका जन्म ज्येष्ट सुदो वारसको हुआ। आप जम्म समय से तीन ज्ञानके धारक थे । इन्द्रादि देवोंने मेरुपर ले जाना, अभिषेक, नृत्य व स्तुति आदि जन्माभिषेक कार्य जैसे कि पूर्व तीर्थकरों के किये थे. किये। १
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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