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________________ भयम भाग | ९१ १००००० श्रावक ९००००० श्राविकाएँ (१०) आर्यदेशके समस्त देशोंमें विहारकर जब आपकी आयु एक महकी शेष रही तब आप सम्मेद शिखर पर्वत पर आये । उस समय दिव्यध्वनि होना बंद होगया था । (११) एक माह में वीके चार कर्मोका नाशकर मिती “वैशाख सुदी छठको बहुत मुनियों सहित सम्मेदशिखर पर्वतसे मोक्ष बधारे | मोक्ष होजाने के बाद इंद्रादि देवोंने पूर्वके तीर्थंकरोंके समान अग्नि- दाह आदि द्वारा निर्वाण कल्याणक उत्सव मनाया। पाठ सोलहवाँ । पॉचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ । (९) भगवान् अभिनंदनके, मोक्ष जानेके नौ करोड़ लाख सागर बाद सुमतिनाथ पाँचवे तीर्थंकर उत्पन्न हुए | (२) आप श्रावण सुदी दूमके दिन अयोध्या के राजा मेघरथकी स्त्री मंगलादेवीके गर्भ में आये । गर्भ में आनेपर इन्द्रादि देवोंने पूर्व तीर्थंकरोंके समान गर्म कल्याणक उत्सव किया | पंद्रह मास तक रत्न वर्षा की । माताको सोलह स्वप्न पूर्वके तीर्थकरों की माताओंके समान आये थे । (३) भगवान् सुमतिनाथ इवाकुवंशी, काश्यप गोत्रके थे ! (१) चैत्र सुदी ग्यारसको भगवान्का जन्म हुआ । इन्द्रादिक देवोंने मेरुपर ले जाना, अभिषेक करना आदि पूर्वक तीर्थंकरकि -समान जन्म कल्याणक उत्सव मनाया। बाल्यावस्थामें भगवान्के
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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