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________________ ९१ प्राचीन जनहातहासा वैराग्य उत्पन्न हुआ और आपने अपने पुत्रको राज्य देकर मिती माह शुदी बारसके दिन वनमें जाकर तप धारण किया । वैराग्य होनेपर लोकांतिक देवोंका माना व इन्द्रादि देवोंका पालिकीमें विठलाकर बनमें लेजाना आदि तप कल्याणक उत्सव देवों द्वार मनाया। (७) पहिले मापने दो दिनका उपवास धारण किया और उसके पूरे होनाने पर अयोध्यामें इन्द्रदत्त राजाके यहां माहारं लिपा इस पर देवोंने इन्द्रदत्तके यहां पंचाश्चर्य किये। (८) अठारह वर्ष तक तप करने पर भगवान्को पौष शुदी चौदसके दिन दुपहरमें शालि वृक्षके नीचे केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ। केवल ज्ञान होनेपर इन्द्रादि देवोंने समवशरण सभा बनाई और केवलज्ञान कल्याणक उत्सव किया। (९) भगवान अभिनंदनकी सभामें इस भाति चतुर्विध संघ था। १०३ वजनाभि आदि गणधर २९०० पूर्वज्ञान धारी २३२०५० शिक्षक साधु ९८०० तीन ज्ञानके घारी १६००० केवलज्ञनी १९००० विक्रिया ऋद्धिके धारक १९६५० मनःपर्ययज्ञानके धारी . . ११.०० वादी मुनि ३३०६०० मेरुषेणा आदि आर्यिकाएं .
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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