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________________ प्रथम भाग । ९० पाठ पंद्रहवाँ । अभिनंदन स्वामी - ( चोये तीर्थंकर) 1 (१) भगवान् संभवनाथके मोक्ष जानेके दश लाख करोड़ सागरके बाद चोथे तीर्थकर भगवान् अभिनंदनका जन्म हुआ । - (२) भगवान्, अभिनंदन वैशाख शुदी छठको माता सिद्वार्थाके गर्भ में आये । आपके पिताका नाम संदर था जो कि अयोध्या के महाराज थे । वंश आपका इक्ष्वाकु और गोत्र काश्यप था । गर्भ में आनेके पहिले पूर्वके तीर्थंकरोंकी माताके समान आपकी माताने स्वप्न देखे | गर्भ में आनेपर इन्द्रादि देवोंने गर्म कल्याणक उत्सव क्रिया । और पंद्रह माह तक रत्नोंकी वर्षा की । (३) माघ सुदी वारस के दिन भगवान् अभिनंदनका जन्म हुआ । इन्द्रोंने देवों सहित मेरु पर्वतपर लेजाकर अभिषेक करना यदि जन्म कल्याणोत्सव उसी भांति किया जिस प्रकार इनसे पूर्वके तीर्थंकरोंका किया था | आप भी जन्ममें तीन ज्ञान धारी थे। (४) इनका शरीर साडेतीनसो धनुष ऊँचा था । इनकी आयु पचास लाख पूर्वकी थी और वर्ण सुवर्णके समान था । (५) साढ़े बारह लाख पूर्व तक आप कुमार अवस्थामें रहे। इसके बाद अपने पिता से राज्य पाकर करीब साड़े बत्तीस काख पूर्वसे कुछ अधिक समय तक नीति सहित राज्य किया । (६) एक दिन आप अपने महलों परसे दिशाओंको देख रहे थे । आपको आकाशमें बादलोंका एक नगरसा बना दिखाई दिया और फिर वह तत्काल वितर बितर हो गया । यही देखकर आपको
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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