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________________ ९३. प्राचीन जन इतिहास। साथ खेलनेको देवगण वालकका रूप धरकर स्वर्गसे आते थे। और वहींसे वस्त्राभूषण भी भगवान के लिये आया करते थे। भगवान् जन्मसे ही तीन ज्ञानके धारक थे। (५) आपकी मायु चालीस लाख पूर्वकी थी और शरीर तीनसो धनुष ऊँचा सुवर्णके समान वर्णका महासुदर था। शरीर में १००८ लक्षण थे। (६) दश लाख पूर्व तक आप कुमार अवस्थामें रहे। बाद अपने पिताका राज्य पाया । जो कि उनतीस लाख पूर्व बारह पूर्वाग तक किया । आपका विवाह हुआ था । (७) बाद आपने दीक्षा धारण की । आपकी दीक्षाका दिन वैशाख सुदी नोमी था। लोकांतिक देवादिकोंने भगवान्का तप कल्याणक उत्सव पहिले तीर्थकरों के समान किया । तपका स्थान सहेतुक वन था| मापके साथ एक हजार रानाओंने तप धारण किया था । इसी समय भगवान्को चोथे ज्ञानकी उत्पत्ति हुई। (८) पहिले पहिल मापने दो दिनका उपवास धारण किया। जिसके पूरे होनेपर सौमनसपुरमें पद्मभूपके यहां आहार लिया। आहार लेनपर इन्द्रादिकोंने पंचाश्चर्य किये। (९) बीस वर्ष तक तप करनेपर एक दिन माम छह दिनका उपवास धारण करके प्रियंगु वृक्षके नीचे बैठे और चार धातिया क्रमांका नाशकर मिती चैत्र सुदी ग्यारसके दिन केवलज्ञान प्राप्त किया । केवलज्ञान हो जानेपर इन्द्रादिकांने ज्ञान कल्याणक उत्सव मनाया ! समवशरण सभाकी रचना की । (१०) भगवानकी सभामें इस प्रकार चतुर्विध संघके मनुष्य थे।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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