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________________ पतितोद्धारक जैनधर्म । [ ३ ] माली सोमदत्त और अंजनचोर !* ९० ] wwwmusa (१.) राजगृहमें सोमदत्त नामका माली रहता था, और उसी नगरमे जिनदत्त नामक सेठ भी रहने थे। सेठ जिनदत्त जैनी थे, वह प्रातः काल उठते ही जिन मंदिरोंमें पूजा करने जाते थे । सोमदत्त मालीने देखा कि सेठ जिनदत्त एक चील जसे यंत्रमें बैठे-बैठे घुर घुर कर रहे हैं। थोड़ी ही देर में वह चील जैसा यंत्र सरे से ऊपरको उड़ गया। मालीने कहा- 'अरे ! यह तो वायुयान है ।' और वह उसकी ओर निहारता रह गया ! सोमदत्त सेठजीको प्रतिदिन उस विमानमें बैठकर उड़ते देखकर आश्चर्यमें पड़ गया । वह सोचने लगा कि 'आखिर सेठजीको ऐसा क्या काम है जो सबेरे ही सबेरे विमान में बैठकर रोजमर्रा कहीं जाते हैं ? धर्मवेलाके समय उनका इस तरह रोजाना जाना रहस्यसे खाली नहीं है। आनेदो आज उन्हें; मैं उनसे पूछूंगा !" सोमदत्त यह विचार ही रहा था कि सरे-से सेठजीका विमान उसके सामने आ खड़ा हुआ। मालीने झटसे जाकर सेठजीके पैर पकड़ लिये। सेठजी बेचारे बड़े असमंजस में पड़े, वोले- 'आखिर बात भी कुछ है !" सोमवत्तने उत्तर दिया- 'आप क्षमा करें तो एक बात पूछूं।" सेठने कहा- 'पूछं, तुझे क्या पूछना है ?' * माराधना कथाकोषकी मूळ कथाके माधारसे ।
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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