________________
मुनि भगदत्त ।
[ ८९
Heiniansinindiandimidianis
उसके पैरों तलेसे खिसक गई। उसने सोचा कि ' भगदसने जिस लिये यह युद्ध ठाना था उसे अब वह अवश्य पूरा करेगा - बलात्कार वह मुझसे व्याह करेगा । किन्तु नहीं, मैं ऐसा कदापि नहीं करूंगी। मैं स्त्री हूं तो क्या ? मेरी इच्छा के विरूद्ध किसकी सामर्थ्य है जो मुझसे व्याह करेगा ? मैं ब्याह नहीं करूंगी- किसी के भी साथ ! मैं अशरण शरण जिनधमकी शरणमें जाऊँगी । वही तो जगतमें सच्ची त्राण है । आजन्म अखंड शीलधर्मका पालन करूँगी ।' अपने इस निश्चयके अनुसार वह एक जैन साध्वीके पास पहुंची और साधुदीक्षा ले भिक्षुणी होगई ।
बनारस में प्रवेश करनेपर भगदत्तने मुंडिकाका सारा वृतान्त सुना; जिसे सुनकर उसका हृदय दयासे भीज गया। वह दोड़ा दोड़ा गया और मुंडिकाके पैरों पड़कर उससे क्षमा मांगने लगा । सच है गुणी ही गुणका आदर कर सक्ता है । भगदत्त हीन जातिका होनेपर भी गुणवान था । मुंडिका के धार्मिक निश्चयने भगदत्तके हृदयको नमा दिया । उसे वैराग्यसे परिपूर्ण कर दिया । जितारिके पुत्रको उसने बनारसका राजा बनाया और वह स्वयं जैनधर्मकी शरणमें पहुंचा - जैन साधु होगया । उसने उग्रोग्र तप तपा, जिससे उसकी प्रसिद्धि चहूं ओर होगई और लोग अभीबन्दना करके अपने भाग्यको सराहते थे । अब यह कोई नहीं कहता था कि भगदत्त हीन जातिका है - उसे कौन माने । क्षमा, शील, शांति, समता प्रभृत गुणने भगदत्तको लोकमान्य बना दिया । गुणोंकी उपासना ही सार्थक है ।
11101111manpsanei
NEVER E