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नित्योत्सवः । इति सञ्जीविनीं ध्यात्वा पञ्चधोपचर्य, ३ श्रीं क्लीं क्लीं हैं हैं क ल ह्रीं सौः ल स क ह्रीं क्लीं क्लीं ह्रीं श्रीं इति सप्तदशाक्षरं सञ्जीविनीमन्त्रं सप्तवारं जपेत् ॥ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं हं सः क ए ई ल ही ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं
हं सः ह्रीं श्रीं इति त्रयोविंशत्यक्षरं प्राणमन्त्रं सप्तवारं
जपेत् ॥ ३ ॐ श्रीं ऐं क्लीं ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ह स क
ह ल ह्रीं ॐ ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं ह क ल ए ही ह क ह ल ह्रीं ह ए क ल ह्रीं ॐ ऐं क्लीं श्रीं ह्रीं क ह ल ए ह्रीं क ह ए ल ही क ह ह ल ही हं सः ॐ ह्रीं श्रीं हं सः सोहं स क ल ह्रीं इति सप्तत्यक्षरं(?)दीपिनीमन्नं च प्रत्येकं सप्तवारं
जपेत् ॥ इमे मन्त्राः पञ्चदशीषोडशीनां साधारणाः ।। षोडशाक्षर्या असाधारणाः पञ्च मन्त्राः । यथा-- ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौः ॐ ह्रीं श्रीं ह स क्ष म ल व र यूं स ह क्ष म
ल व र यी य र ल व क्ष म ल व र यूं ॐ ॐ ह्रीं श्रीं
ॐ सौः क्लीं ऐं इति महाकामेश्वरमन्त्रं दशवारं जपेत् ॥ ३ (पञ्चदशी) क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ही स क ल ह्रीं
त्रिवार जपेत् ॥ ३ (षोडशी) श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ही ह
स क ह ल ही स क ल ह्रीं सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
त्रिवारं जपेत् ॥ ३ ऐं क्लीं सौः बालायै नमः । ऐं क्लीं उच्छिष्टचाण्डालि सुमुखि देवि
महापिशाचिनि ही ठः ठः ठः स्वाहा–त्रिवारं जपेत् ॥ ' अस्य मन्त्रस्य विविधाः पाठाः ईषद्भिनाः तत्तत्कोशेषु दृश्यन्ते. .