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पाँचवाँ अध्याय ।
र यह पूछा जाय बिन्ध निर्णय करके यह स्याद्वाद हमे
आनेकी कहानको चला गया और बारह भावन
नित्य है या क्षणिक ? इन दोनों पक्षोंमें ही वस्तुमें अर्थक्रिया नहीं वनेगी। और अर्थक्रियाके अभावमें वस्तुकी सत्ताके अभावसे वस्तु कुछ भी नहीं ठहरेगी। इस लिए जीव आदि पदार्थोकी केवलमात्र कल्पना है। राजन् ! ऐसी झूठी कपोलकल्पित बातोंमें आप मत फॅसो । इनमें कुछ भी तत्व नहीं है । उसके इन वचनोंको सुन कर वज्रायुधने कहा कि विद्वन् ! सुनिए, जरा मेरे वचनों पर ध्यान दीजिए। क्षणिक एकान्त और नित्य एकान्त पक्षमें ये दोप आते हैं । इसी तरह सर्वथा भेदवाद और सर्वथा अभेदवादमें दोष देख पडते. हैं । पर स्याद्वादमतको माननेवालोंके यहाँ ये दोष नहीं आते । उनक यहाँ पुण्य-पापका आस्रव होकर बंध होता है और फिर बंधके अभाव से मोक्ष अवस्था माप्त होती है । यदि इस पर यह पूछा जाय कि स्याद्वादकी सिद्धि कैसे होती है तो यह उत्तर दिया जायगा कि स्याद्वादके सम्बन्धमें निर्णय करके देखा जा चुका है, कोई भी वाधक उसके विपयमें उपस्थित नहीं होता; क्योंकि यह स्यावाद हमेशा ही सब पदाथों में मौजूद रहता है । राजाके इस प्रकारके उत्तरको सुन कर वह देव हार मान गया और अपनी वहाँ आनेकी कहानीको सुना कर तथा दिव्य वस्त्रआभूषणों द्वारा वज्रायुधकी पूजा कर स्वर्गको चला गया । इसके बाद पृथ्वीकी रक्षा करनेवाला क्षेमंकर राजा प्रतिवोधको प्राप्त हुआ और बारह भावनाओं पर विचार करने लगा। इतनेमें पांचवें ब्रह्म स्वर्गसे लौकान्तिक देव आये
और उन्होंने क्षेगकर राजाके वैराग्यकी खूब तारीफ की तथा भक्ति-स्तुति की। इसके बाद क्षेमंकरने वज्रायुधको बुलाया और उस पर राज-भार डाल कर आप वनमें जाकर दिगम्बर हो गया । थोड़े ही समयमें उसे केवलज्ञान लाभ हो गया। उस समय वह विशु तीर्थंकर भगवान खूर ही सुशोभित होते थे। इसके बाद वसन्तका समय आया और कामदेवका मभाव बढ़ने लगा। तव बुद्धिमान बज्रायुध राजा वन-कीडाको गया । वहाँ वह अपनी रानियोंके साथ सुदर्शन नामके सरोवरमें जल-क्रीडा कर रहा था । इसी समय किसी दुष्ट विद्याधरने उसके ऊपर एक पत्थरकी शिला डाल दी और आकर उसे नागपाश द्वारा बॉध लिया । परन्तु उस बलीने हाथ से ही उस शिलाके उसी समय खंड खंड कर दिगे और नागपाशको भी नष्ट कर दिया । तव पूर्वभवका वैरी बह विद्युष्ट चुपके से भाग गया । और राजा अपनी देवियोंके
साथ साथ नगरको चला आया तथा वहाँ सुखसे रहने लगा । कुछ कालमें • धर्मके प्रभावसे उसके यहाँ निधियों सहित चक्ररत्नकी उत्पत्ति हुई और वह