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पाण्डव-पुराण |
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संयम धारण कर साधु हो गये । इसके बाद भगवानको नमस्कार कर श्रीविजय आदि सब अमिततेजके साथ धुजा, तोरणोंसे सुसज्जित अपने अपने नगरोंको चले आये | नगरमै आकर अमिततेजने धर्म-साधनमें अधिक मन लगाया । वे पर्वदिनों में उपवास करते अपने किये हुए अपराधोंका प्रायश्चित लेते, भगवानकी पूजा और स्तुतिमें दत्तचित्त रहते, पात्रोंको दान देते तथा हमेशा धर्मकथामें लीन रहते । ऐसा करते करते उन्हें निर्मल और निर्दोष सम्यग्दर्शनकी प्राप्त हो गई थी। वे बड़े मंदकपायी और प्रेमसे पिताकी नई प्रजाका पालन करते थे; मुनियोंकी भाँति शान्तचित्त और धर्म-कर्म में लीन तथा उभय लोकसम्बन्धि हितके इच्छुक थे । वे बहुतसी विद्याओंके भंडार थे, जो कुल और जातिके निमित्तसे उन्हें प्राप्त हुई थीं । उनके नाम सुनिए । प्रज्ञप्ति, आग और जलको थांभनेवाली स्तंभिनी, कामरूपिणी, विश्वप्रकाशिका, अप्रतिघात- कामिनी, आकाशगामिनी, उत्पत्तिनी, वशंकरी, आवेशिनी, शत्रुदमा, प्रस्थापनी, आवर्तनी, प्रहरणी, प्रमोहनी, विपाटिनी, संक्रामणी, संग्रणी, भंजनी, प्रवर्तिनी, प्रतापनी, प्रभावती, पलायिनी, निक्षेपिणी, चांडाली, शवरी, गौरी, खट्टांगिका, श्रीमृद्गुणी, शतसंकुला, मातंगी, रोहिणी, कुष्मांडी, वरवेगिका, महावेगा, मनोवेगा, चंडवेगा, लघुकरी, पर्णलघ्वी, चपलवेगा, वेगावती, महाज्वाला, शीतवैतालिका, उष्णतालिका, सर्वविद्या-समुच्छेदा, बंधप्रमोचिनी, प्रहारावरणी, युद्धवीर्या, चामरी और योगिनी इत्यादि । वे इन विद्याओं और दोनों श्रेणियोंके स्वामी थे; एवं संसार - प्रसिद्ध थे । पुण्यके उदयसे उन्हें भोग-विलासकी सब सामग्री यथेष्ट प्राप्त थी । एक दिन पुण्य-योगसे उनके यहाँ दमवर नाम चारण मुनि आहारको आये | अमिततेजने उन्हें विधि-पूर्वक आहार-दान दिया, जिसके प्रभावसे उनके यहाॅ पंचाश्वर्यकी वर्षा हुई ।
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एक समय अमिततेज और श्रीविजय दोनों वनमें विहार के लिए गये हुए थे । वहाँ उन्होंने सुरगुरु और देवगुरु नाम दो महर्षियोंको देखा । दोनोंने सुनियो को भक्तिभाव से नमस्कार कर उनसे धर्मका उपदेश सुना । इसके बाद श्रीविजयने उनसे नम्रता भरे शब्दों में पूछा कि प्रभो ! मेरी और मेरे पिनाकी पूर्वभवकी कथा कहिए । मुनिराजने श्रीविजय के पूर्वभवोंका और त्रिपृष्ट नारायणके विश्वनन्दिके भवसे लेकर कई एक भवका वर्णन किया । श्रीविजयने पिताके माहात्म्यको सुन कर उनके पदकी प्राप्तिका निदान बाँधा | बाद खेचरों और भूचरों