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चौथा अध्याय ।
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साथ युद्ध करने को तैयार हो गया । दोनों भाई भाईमें युद्धकी तैयारी सुन कर श्रीपेण उनकी लड़ाई निवटानेके लिए उनके पास गया । उन्हें बहुत कुछ समझाया, पर वह सफल न हुआ । तब उसे बहुत ग्लानि हुई और अपना कहना न मानने के कारण दुःख मे उसने स्वयं विपका फूल सूंघ कर आत्महत्या करली | श्रीपेणकी यह दशा देख दोनों रानियों और सत्यभामाने भी विपफूल सूँघ कर आत्मघात कर लिया । श्रीपेण और रानी सिंहनंदिताका जीव मर कर घातकीखंड दीपकी उत्तरकुरु नाम उत्तम भोगभूमिमें युगल उत्पन्न हुए । एवं अनिंदिता और सत्यभामा जीव भी युगल उत्पन्न हुए । इनमें अनिंदिताका जीव तो खीलिंग छेद कर पुरुष हुआ था और सत्यभामा उसकी स्त्री हुई थी । उनकी आयु तीन पल्यकी थी । वे सबके सब वहॉ कल्पवृक्षोंके सुख भोगते थे और सुखचैन से अपना समय बिताते थे । आयु पूरी होने पर मर कर शेष पुण्य के प्रभावसे वे देव गतिमें गये । श्रीपेणका जीव सौधर्म स्वर्गमें श्रीप्रभ नाम देव हुआ और सिंहनंदिताका जीव उसकी विद्युत्प्रभा नाम देवी हुई । एवं अनिंदिताका जीव विमलभ विमानमें भवदेव नाम देव और सत्यभामाका जीव उसी विमान में शुक्लममा नाम उसकी देवी हुई । उनकी आयु पॉच पल्यकी थी । आयु पर्यन्त स्वर्गके सुखोंको भोग कर वे वहाँसे चय कर श्रीपेणका जीव तो तुम अमिततेज हुए हो और सिंहनंहिताका जीव ज्योतिःप्रभा नाम तुम्हारी कान्ता हुई है । एवं अनिंदिताका जीव श्रीविजय और सत्यभामाका जीव सुतारा हुई है । उधर उस दुष्ट कपिलके जीवने बहुत काल तक संसार परिभ्रमण कर अनन्त दुःख उठाये । सच है पायसे जीवोंको घोरातिघोर दुःख उठाने पड़ते हैं । भूतरमण वनमें ऐशवती नदी के किनारे तापसियोंका एक आश्रम था । उसमें एक कौशिक नाम तापस रहता था । उसकी स्त्रीका नाम चपलवेगा था । कपिलका जीव उसके वहाँ मृगशंग नाम पुत्र हुआ । वह भी तापस हो गया। एक दिन मृगांगने चपलवेग नाम विद्याधरोंके राजाकी विभूतिको देख कर यह निदान किया कि अगले भवमें मैं इसके यहाॅ पुत्र जन्म धारण करूँ । राजन् ! निदानके प्रभाव से वह मृगशृंग ही चपलवेगके यहाँ यह अशनिघोष नाम पुत्र हुआ है । इसको हित अहितका कुछ भी विचार नहीं है । उसी स्नेहके वशीभूत हो इसने सुन्दरी सुताराको हरा था। अमिततेज ! तुम इस भवसे पाँचवें भवमें चक्रवर्ती, तीर्थंकर और कामदेव इन तीन पदोंके धारी महात्मा होओगे । यह कथा सुन कर अश निघोष, स्वयंप्रभा और सुतारा आदि तथा और बहुतसे सत्पुरुष उस समय