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________________ ७० पाण्डव-पुराण। wwwwwww वहाँ एक सत्यकि नाम ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्रीका नाम जाम्बू था। उसके एक सत्यभामा नाम पुत्री थी। एक दिन कपिलको देख कर सत्यकिने सोचा कि यह लड़का वेदका पाठी अच्छा विद्वान् है । इसके साथ कन्या ब्याह देना योग्य और शास्त्रके अनुकूल है । इसके बाद उसने कपिलके साथ विधि-पूर्वक सत्यभामाका विवाह कर दिया । कपिल वहाँ रह कर थोड़े ही दिनोंमें खूब धनी हो गया। राजाकी ओरसे भी उसकी पूछताछ होने लगी । जब धरणीधरने सुना कि कपिल खूब धनाढ्य और राज्यमान हो गया है तब वह दरिद्री दरिद्रता नष्ट करनेके लिए उसके पास रत्नपुर आया । कपिलने उसे दूरसे आता देख उठ कर नमस्कार किया और लोगोंमें ऐसी प्रसिद्धि कर दी कि यह मेरा पिता है। धरणीधरने भी लोगोंसे यही कहा कि यह मेरा प्रिय पुत्र है । कपिलने धरणीधरको धन, . वस्त्र, आभूषण आदि खूब सम्पत्ति दी जिससे उसकी दरिद्रता दूर हो गई और वह एक भला मानस बन गया । एक दिन सत्यभामाने धन, वस्त्र आदिसे धरणीधरका खूब आदर सत्कार कर भक्तिभाव दिखाते हुए एकान्तमें पूछा कि कपिलजी क्या सचमुच ही ये आपके पुत्र हैं ? धरणीधर लोभके वश कपिलकी सारी कथा सत्यभामाको सुना कर उसी समय दूसरे देशको रवाना हो गया। सच है धन मनुष्यसे क्या क्या काम नहीं करा लेता। स्थनूपुरका राजा श्रीषेण था। उसकी दो रानियाँ थीं। एक सिंहनंदिता और दूसरी आनंदिता । उसके इन्द्र और उपेंद्र नाम दो पुत्र थे। पतिके ऐसे चरितको सुन कर सत्यभामा श्रीषेणकी शरणमें आई और उसने महाराजसे अपने पतिका सारा हाल जैसा सुना था कह दिया, जिसको सुन कर राजाने कपिलको शहर वाहिर निकाल देनेकी आज्ञा देदी। एक दिन श्रीपेणके यहाँ दो चारणमुनि आये। उनके नाम अमितगति और अरिंजय थे । उनको राजाने पड़गाहा और नमस्कार आदि कर विधि-पूर्वक आहार दिया, जिससे राजाको अतिशय पुण्य-लाभ हुआ । श्रीषेणकी दोनों रानियों और सत्यभामाने मुनिदानकी अनुमोदना की, जिसके प्रभावसे उन्होंने राजाके साथ साथ उत्तम भोगभूमिकी तीन पल्यकी आयुका बंध किया । कौशाम्बीका राजा महाबल था । उसकी रानीका नाम श्रीमती था । उसके एक श्रीकान्ता नामकी पुत्री थी । महावलने श्रीकान्ताका विवाह इन्द्रसेनके साथ कर दिया था और श्रीकान्ताके साथ इन्द्रको , एक दासी प्रदान की थी। दैवयोगसे वह दासी उपेन्द्रसेन पर आसक्त हो गई। यह वात जब इन्द्रसेनके कानों पहुंची तब उसे बड़ा क्रोध आया और वह उपेन्द्रके ,
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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