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तीसरा अध्याय । एक बार अनेक राजों द्वारा सेवित जयकुमारका संसारकी विचित्र गति पर ध्यान गया; संसारकी अनित्यताका उनकी बुद्धि पर चित्र खिंच गया। उन्होंने आदिनाथ प्रभुके पास जाकर ध्यानपूर्वक धर्मका उपदेश सुना; तथा संसार-देह-भोगोंसे विरक्त होकर शिवंकर महादेवीके साथ-साथ अपने अनंतवीर्य नाम पुत्रका राज्याभिषेक कर उन्हें अपने पद पर बैठाया और स्वयं सव परिग्रहको छोड़ कर बहुतसे राजोंके साथ-साथ दिगम्बर हो गये । इसके बाद थोड़े ही दिनोंमें सात ऋद्धियाँ तथा मनःपर्ययज्ञान लाभ कर वे आदिनाथ भगवानके इकहत्तरवें गणधर हुए; और क्रमसे घातिकमौके नाशसे उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया । इधर पति-वियोगसे पीड़ित सुलोचनाने भी विरक्त होकर सुभद्रा नाम भरतकी पत्नी के साथ-साथ ब्राह्मी आर्याके पास अर्जिकाके व्रत ग्रहण कर लिये; और तप कर वह अच्युत स्वर्गके अनुत्तर विमानमें देव हो गई । इसके बाद ऋषभप्रभुने सम्पूर्ण देशों में विहार कर धर्मका उपदेश किया; और धीरे धीरे सब जगहकी भव्यजन-रूप वनश्रेणीको सींच कर कैलाश पर्वत पर पहुंचे। वहाँ प्रभुने चौदह दिन तक मुक्तिका कारण योग धारण कर योगनिरोध किया, और माघवदी चौदसको प्रात:काल, पूर्व मुख कर निष्पाप आदिप्रभु पद्मासनसे औदारिक शरीर छोड़ कर अव्यय मोक्षपदको प्राप्त हो गये । उस समय सव सुर-असुरोंने आकर प्रभुका निर्वाण महोत्सव मनाया और सिद्धि लाभकी इच्छासे पुण्य-बंध किया । इसके बाद जय भी अघाति काँका नाश कर कल्याण-मय मोक्ष-अवस्थाके भोक्ता हो गये। ___उन जयकी जय हो जो संसारके विजेता और सम्पूर्ण शास्त्रोंके ज्ञाता है; शत्रु-रूप आगको घुझानेके लिए मेघ हैं; मनोमलको शोधनेवाले और विपुल शुद्धिके सम्पादक हैं तथा जो कौरवोंके शिरोमणि है; और सब भव्य-जन जिनकी स्तुति करते हैं। इस प्रकार तत्त्वोंके स्वरूपको वता कर और अनन्त जीवोंको संसारसे पार कर भगवान आदिनाथ निर्वाणको चले गये । अव भवभोगी और शुद्ध सवेगयोगी दयालु भरत महाराज मोक्ष-अवस्था लाभ करें।