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________________ ५६ पाण्डव-पुराण | चौथा अध्याय । उन आदिनाथ के गुणोंका मैं स्मरण करता हूँ जो पुराणपुरुपोंमें उत्तम है; जिनका अभ्युदय संसार - प्रसिद्ध है और जो उत्तम अवस्थाको प्राप्त कर चुके हैं। जयके बाद आकाशमें चंद्रमाकी भाँति कुरुवंशमें अनन्तवीर्य राजा हुआ । इसके वाद कुरुचंद्र, शुभंकर, धीरवीर धृतिंकर, धृतिदेव और गुणोंका पुंज गुणदेव राजा हुआ । इनके बाद धृतिमित्र आदि और और बहुतसे राजोंने अपने जन्मसे कुरुवंशको अलंकृत किया। बाद सुप्रतिष्ठ आदि कई एक स्वर्गगामी पुण्यवान् राजा हुए। अनंतर भ्रमघोष, हरिघोष, हरिध्वज, रविघोष, महावीर्य, पृथ्वीनाथ प्रथु, गजवाहन आदि सैकड़ों राजोंके हो चुकने पर विजय नरेश हुए। यह संसारप्रसिद्ध और जयश्री के पति थे । इनके बाद सनत्कुमार, सुकुमार, वीरकुमार, विश्व, वैश्वनर, विश्वध्वज और धुजाके जैसा वृहत्केतु आदि बहुत से कर्मवीर राजोंने इस वंशमें जन्म लिया | बाद विश्वसेन महाराजने इस वंशका मुख उज्ज्वल किया इन्हींके यहाँ परमपूज्य सोलहवें तीर्थंकर श्रीशान्तिनाथ भगवानका जन्म हुआ है। अब थोड़े में श्री शान्तिनाथ प्रभुका चरित लिखा जाता है । यह सत्पुरुषोंको सच्चामार्ग सुझानेवाला और परम पवित्र है । उसे सुनिए । भरतक्षेत्र के बीच में एक विजयार्द्ध पर्वत है। इसकी दक्षिण श्रेणीमें रथनूपुर नगर है | वहाँका राजा ज्वलनजटी था । वह विद्याधरोंका अगुआ और सव गुण-सम्पन्न था। उसकी रानीका नाम वायुवेगा था । वह वायुके वेगकी तरह चंचल और सुन्दरी थी । ज्वलनजटी और वायुवेगाके एक पुत्र था । उसका नाम अर्ककीर्ति था । वह भी संसार - प्रसिद्ध था --- उसकी कीर्ति सारे संसार में व्याप्त थी । तथा इनके स्वयंप्रभा नामकी एक पुत्री भी थी जो अपनी शोभासे लक्ष्मीकी बरावरी करती थी । एक दिन राजाको खबर लगी कि वनमें जगनंदन और अभिनंदन नाम दो मुनीश्वर आये हैं । खबर पाते ही वह उनकी वन्दना के लिए वनमें गया । वहाँ पहुँच कर उसने मुनीश्वरोंकी बन्दना की और उनसे धर्मका उपदेश सुना तथा सम्यग्दर्शन ग्रहण किया । उसके साथ स्वयंप्रमाने भी धर्म धारण किया । इसके बाद ज्वलनजी मुनीश्वरोंको नमस्कार कर नगरको वापिस लौट आया ।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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